-
झारखंड में दो सीटों के लिए होना था चुनाव
-
दो सीटों के लिए तीन प्रत्याशी हैं मैदान में
रांची: झारखंड में भी दो सीटों पर चुनाव होना था. इसके तीन प्रत्याशियों द्वारा पर्चा दाखिल किया गया था.
चुनाव आयोग ने 26 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव को स्थगित कर दिया है. चुनाव आयोग ने यह फैसला कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण लिया है.
झारखंड में दो सीटों के लिए चुनाव होने थे. इस पद के लिए झामुमो के शिबू सोरेन, भाजपा के दीपक प्रकाश और कांग्रेस के शहजादा अनवर मैदान में हैं.
Also Read This: शाहीन बाग: पुलिस ने प्रदर्शन स्थल को कराया खाली, बड़ी संख्या सुरक्षा बल तैनात
अप्रैल में कार्यकाल हो रहा है पूरा
राज्यसभा के 2 सदस्यों का कार्यकाल इस साल 9 अप्रैल में खत्म होगा. वर्ष 2014 में निर्विरोध जीते राजद के प्रेमचंद गुप्ता और निर्दलीय परिमल नथवाणी का कार्यकाल खत्म हो रहा है.
चुनाव आयोग ने प्रदेश में खाली हो रही इन सीटों के लिए चुनाव प्रक्रिया 6 मार्च से शुरू की थी. 26 मार्च को बैलेट पेपर के जरिए मतदान होना था. इसी दिन शाम को 5 बजे नतीजों का ऐलान किया जाना था.
जीत के लिए 28 विधायकों का समर्थन जरूरी
9 अप्रैल को राज्यसभा में झारखंड से दो सीटें खाली हो रही हैं. चुनाव में जीत के लिए एक उम्मीदवार को कम से कम 28 विधायकों के समर्थन की जरूरत है. झामुमो के पास 30 विधायक हैं.
बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने के बाद इस पार्टी में विधायकों की 26 हो गई है. आजसू के दो और निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी भाजपा को मिलना तय मना जा रहा था. इस हिसाब से झामुमो और भाजपा प्रत्याउशियों की जीत तय लग रही थी.
जीत के लिए बना रहे थे रणनीति
भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने प्रत्याकशियों के जीत के लिए रणनीति बनाने में लगे थे. भाजपा को आजसू और निर्दलीय अमित यादव ने समर्थन देने की घोषणा कर दी थी.
पार्टी के प्रत्याशी दीपक प्रकाश खुद सरयू राय के घर समर्थन मांगने पहुंच गये थे. इधर, कांग्रेस के राज्यसभा प्रभारी पीएल पुनिया भी झारखंड आकर मंथन करने में लगे थे.
भाजपा और कांग्रेस दोनों ने चुनाव को लेकर सोमवर को बैठक की थी.
6 साल का कार्यकाल
राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है. इन सदस्यों का चुनाव लोकसभा सदस्यों की तरह प्रत्यक्ष रूप से वोटरों के द्वारा नहीं होता.
राज्यसभा सदस्यों का निर्वाचन राज्यों की विधानसभाओं और विधानमंडलों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है. जिस राजनीतिक दल के पास जितने अधिक विधायक होते हैं, वह उतने ही अधिक सांसदों को राज्यसभा में भेज सकते हैं.