नीता शेखर,
रांची: आज मौसम बड़ा सुहावना लग रहा था. हल्की-हल्की बारिश की बूंदे पायल की झंकार की तरह… हल्की हल्की से सुनाई दे रही थी. सर्द हवा के झोंके एक मीठी सी एहसास दे रही थी.
आज मन खुश क्यों ना हो, आज हमारी शादी की 25वीं सालगिरह थी. सब बच्चे उत्साहित होकर पार्टी की तैयारी में लगे थे. समय कैसे गुजर जाता है पता ही नहीं. ऐसा लग रहा था मानों कल की ही बात हो…
बच्चे बिल्कुल कह दिये थे, आज आप कोई काम नहीं करेंगी, इसलिए मैं भी मौसम का मजा ले रही थी. मैं अपनी पुरानी दुनिया में चली गई. याद आया वह पल जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी.
किसी फंक्शन में इन से मुलाकात हुई थी. उसी समय लाउडस्पीकर पर यह गाना बज रहा था… दूर शहनाई गीत गाते हैं दिल के तारों को छोड़ जाते हैं, सचमुच दिल के तार झनझना उठे. किसे पता था कि सचमुच दिल के तार झनझना उठेंगे? तभी मेरा परिचय मेरी सहेली ने अपने भाई से कराई, यह है भाई शशि और यह है मेरी सहेली निशा.
हम पहली बार मिल रहे थे, पर ऐसा लगा जैसे हम जन्मों से एक-दूसरे को जानते हो. ना जाने वह कौन सी आकर्षण थी जो एक-दूसरे की तरफ देखते-देखते हम खींचते चले गए और फिर हम मिलने लगे. शशि एक अच्छी सी प्राइवेट कंपनी में काम करने लगे. अब हमने सोचा कि चलो हम शादी कर लेते हैं. फिर हमारी शादी हो गई.
अब हमने नई दुनिया में प्रवेश कर लिया था.” सगाई से शादी…. शादी से परिवार. हमसफर का साथ हो हाथों में हाथ हो तो जिंदगी हसीन लगती है.” एक कारवां गुजर गया. हमसफर से रूठना और मनाना कहते हैं. जिंदगी में मिठास ना हो, खटास ना हो, तो जिंदगी बेमानी लगती है.
कहते हैं कि रात के बिना चंद्र नहीं, चंद्र के बिना रात नहीं. प्यार की इस रिमझिम फुहारों ने एक प्यारी सी बिटिया को भेज दिया. उनका मन खुशियों से भर उठा.
इसी बीच बहुत सी बातें हुई. कभी खुशी कभी गम. इन राहों पर चलते हुए एक बार फिर से खुशियों का सौगात आया है. अब घर में एक पूरा परिवार बन गया था. इस तरह घर में समय का चक्र चलता रहा. परिवार की उलझन में उलझ कर पता ही नहीं चला बच्चे कब बड़े हो गए. जो जीवन भर एक दूसरे का हाथ थामकर चल पड़ते, जीवन भर साथ निभाने.
समय का पहिया घूमता रहता है. आते जाते रहता हैं. हम अपनी राहों पर चलते जाते हैं. यह तो जीवन करता है. उस पर चढ़कर इंसान आगे ही बढ़ता जाता है.
“टूट के डाली हाथों पर बिखर जाती है उसे मेहंदी कहते हैं, सात फेरों से जो जीवन शुरू होता है उसे शादी कहते हैं. यह सब सोचते-सोचते में कब सपनों की दुनिया में खो गई, पता ही नहीं चला. तभी पीछे से बेटी की आवाज आई .कहां हो मां पार्लर जाना है. मैं अपने सपनों की दुनिया से बाहर आ गई.