दिसपुर: कहते हैं कि कुछ बड़ा करने के लिए जोखिम उठाना बहुत जरूरी होता है. ऐसा ही एक उदारण असम के रॉबिन भुइयां ने पेश किया है. भुइयां अपने खेत में पारंपरिक खेती से ऊपर उठकर रंग-बिरंगी सब्जियां उगा रहे हैं.
खास बात है कि जिस जमीन पर वे ये काम कर रहे हैं, उसे अपने खास तरह के चावल उत्पादन के लिए जाना जाता है. ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित माजुली में भुइयां की खास फूलगोभी खासी लोकप्रिय हो रही है.
आर्ट्स में ग्रेजुएट भुइयां ने खेती को अपना पेशा बनाने का फैसला किया. वहीं, महामारी के दौरान उन्होंने पीली और नीली फूलगोभी की पैदावार के बारे में सोचा. आमतौर पर वे अपनी 5 बीघा जमीन में सफेद फूलगोभी ही उगाते हैं. उनके खेत जिला मुख्यालय गरमौर से 6 किलोमीटर दूर हैं. हालांकि उन्होंने जोखिम भले ही बड़ा लिया था, लेकिन मेहनत बेकार नहीं गई. उन्हें इस नए कदम का फायदा भी मिला.
उन्होंने बताया कि ‘अक्टूबर के अंत में माजुली के अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर ने मुझे लखीमपुर स्थित हॉर्टिकल्चर की एक दुकान से परिचित कराया था. यहां मैंने पीली और नीली फूलगोभी के बारे में जाना. दुकान के मालिक ने मजुली में हर प्रकार के 10 ग्राम बीज दिए.’ उन्होंने कहा ‘मैंने हर वैरायटी के कुछ पैदावार की और सर्दियों में मुझे इसका फायदा भी मिला. इस वैरायटी को वैलेंटाइन के नाम से जाना जाता है. मेरे हिसाब से इस इलाके में कोई भी रंगबिरंगी फूलगोभी नहीं उगाता है.’
भुइयां के दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे होती है. वे अपने खेत पर 25 युवाओं के साथ मिलकर ऑर्गेनिक खेती करते हैं. उन्होंने स्ट्रॉबैरी उगाना भी शुरू की है. वे कहते हैं ‘मैं हर महीना स्ट्रॉबैरी से 30 हजार रुपए से ज्यादा कमा लेता हूं. खास बात है कि ये फल पहाड़ के फलों की तरह ही मीठे हैं.’ उन्होंने बताया कि जब उन्होंने इलाके में करीब 6 साल पहले ब्रोकोली की बात की थी, तो लोगों ने कहा था कि फूलगोभी बीमार है इसलिए हरी पड़ गई है. उस समय बहुत की कम लोगों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन अब कई लोग इसे पसंद करते हैं.