नई दिल्लीः अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो दिवसीय भारत यात्रा के दौरान रक्षा सौदे पर मुहर लग गई. तीन अरब डॉलर के इस रक्षा सौदे के तहत भारत को अमेरिका अपने दो हेलीकॉप्टर बेचेगा.
इनमें पहला हेलीकॉप्टर है एएच 64 ई अपाचे और दूसरा है एमएच 60 रोमियो. इस सौदे के तहत भारत को छह अपाचे और 23 रोमियो हेलीकॉप्टर मिलेंगे, जो देश की थलसेना और नौसेना की ताकत को बढ़ाने में मददगार होंगे.
क्यों रोमियो है खास
23 एमएच 60 रोमियो हेलीकॉप्टर लॉकहीड मार्टिन कंपनी का बनाया हुआ एमएच-60 रोमियो सीहॉक हेलीकॉप्टर इतना घातक है कि पानी की गहराई में मौजूद पनडुब्बी से लेकर पानी की सतह पर मौजूद पोत पर अचूक निशाना साधकर उन्हें तबाह कर सकता है.
ये हेलीकॉप्टर समुद्री सीमा में तलाश एवं बचाव कार्यों में भी उपयोगी है. ये दुश्मन की नावों को ट्रैक कर उनके हमलों को रोकने के लिए परिष्कृत लड़ाकू प्रणालियों- सेंसर, मिसाइल और टॉरपीडो से लैस है . एमएच 60 रोमियो हेलीकॉप्टर अमेरिकी नौसेना में एंटी-सबमरीन और एंटी-सरफेस वेपन के रूप में तैनात है.
यह भारतीय रक्षा बलों को सतह रोधी और पनडुब्बी रोधी युद्ध जैसे मिशन में सफलता दिलाने की क्षमता रखता है. इसकी खासियत का इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह हेलीकॉप्टर दुनियाभर की नौसेनाओं का पसंदीदा है. रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी तक ने इसे अपनी सीमा की रक्षा के लिए तैनात कर रखा है.
हिंद प्रशांत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में दिखेगी भारत की रक्षा क्षमता एमएच 60 रोमियो हेलीकॉप्टर के आने से भारत की रक्षा क्षमता में इजाफा होगा.
साथ ही हिंद प्रशांत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता, शांति एवं आर्थिक प्रगति में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
मौजूदा हेलीकॉप्टरों में से सबसे आधुनिक इस हेलीकॉप्टर को जंगी जहाज, क्रूजर्स और एयरक्राफ्ट करियर से ऑपरेट किया जा सकता है.
ये हेलीकॉप्टर एंटी-सबमरीन के अलावा निगरानी, सूचना, मालवाहक, निजी वाहन, सर्च और बचाव, गनफायर और लॉजिस्टिक सपोर्ट में कारगर है.
दुश्मन की तबाही ‘अपाचे’
अब बात करते हैं दुनिया के सबसे घातक लड़ाकू विमान ‘अपाचे’ की, जो कि एक खूंखार शिकारी है, यह दुश्मन को पूरी तरह से नेस्तोनाबूत करके ही छोड़ता है.
इसे एक तरह से ‘फ्लाइंग टैंक’ कहा जाता है. इस नाम से यह पूरी दुनिया में मशहूर है. हालांकि भारत और अमेरिका के बीच पहले हो चुके एक समझौते के तहत 17 ‘अपाचे एएच-64 ई’ हेलीकॉप्टर मिल चुके हैं, जो फिलहाल इंडियन एयरफोर्स के पास हैं.
यूएस की बोइंग कंपनी ने इसे बनाया है. इस हेलीकॉप्टर की स्कॉवड्रन ‘ग्लेडिएटर’ को पंजाब स्थित अति संवेदनशील एयरफोर्स स्टेशन पठानकोट में तैनात किया गया है. युद्ध के मैदान में अपाचे हेलीकॉप्टर न केवल वायुसेना बल्कि थलसेना का भी मददगार है.
यह युद्ध में आर्मी स्ट्राइक कोर के हमले को एविएशन कवर देते हुए उसे और खतरनाक बनाएगा. इसमें दो पायलट एक के पीछे एक बैठते हैं. एक पायलट हेलीकाप्टर ऑपरेट करता है, जबकि पीछे बैठा को-पायलट टारगेट को लोकेट करता हुआ सिस्टम यानी वैपन एंड इंक्यूपमेंट्स को कंट्रोल और ऑपरेट करता है.
अपाचे उष्ण-कटीबंधीय क्षेत्रों और मरूस्थलीय इलाकों में ऑपरेशन की क्षमता रखता है. इसका टारगेट एक्वीजिशन और डेजिग्नेशन सिस्टम आधुनिक है.
इसमें पॉयलट नाइट विजन सेंसर, थर्मल इमेजिंग, डाटा लिकिंग व फायर कंट्रोल राडार (360 डिग्री) सिस्टम मौजूद है, जिससे यह अंधेरे में भी दुश्मन पर वार कर सकता है. यह बेहद कम ऊंचाई से हवाई और जमीनी हमले में सक्षम है.
अपाचे 21 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है. यह 280 किमी प्रतिघंटे की अधिकतम रफ्तार से उड़ान भर सकता है. इसमें 16 एंटी टैंक एजीएम-114 हेलफायर मिसाइल छोड़ने की क्षमता है. इसमें 30 मिलीमीटर की दो गन हैं, जिनमें एक बार में 1,200 गोलियां भरी जाती हैं.
अपाचे में 16 एंटी टैंक एजीएम-114 हेलफायर और स्ट्रिंगर मिसाइल लगी होती हैं. हेलफायर मिसाइल किसी भी आर्मर्ड व्हीकल जैसे टैंक, तोप, बीएमपी वाहनों को पल भर में उड़ा सकती है.
अपाचे स्ट्रिंगर मिसाइल हवा से आने वाले किसी भी खतरे का सामना करने में सक्षम है. इसमें हाइड्रा-70 अनगाइडेड मिसाइल भी है, जो जमीन पर किसी भी निशाने को तबाह कर सकता है.
इस हेलीकॉप्टर को दुश्मनों का रडार भी आसानी से पकड़ नहीं पाता है. जिसका प्रमुख कारण हेलीकॉप्टर की सेमी स्टेल्थ टेक्नोलॉजी और कम ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता है.
इसमें अत्याधुनिक लांगबो रडार लगा हुआ है जिससे यह नौसेना के लिए भी मददगार साबित होगा. अपाचे मल्टीरोल फाइटर हेलीकॉप्टर है.
भारतीय वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि अपाचे के बेड़े में शामिल होने से उसकी लड़ाकू क्षमताओं में काफी बढ़ोतरी होगी, क्योंकि इनमें भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर बदलाव किया गया है.
शुरुआत में इन हेलीकॉप्टरों को हिंडन एयरबेस पर तैनात किया गया था. जहां से कुछ जरूरी उपकरण लगाने के बाद इन्हें पठानकोट एयरबेस पर आधिकारिक तौर पर वायुसेना में शामिल कर लिया गया है.