रांची: किसी भी माध्यम के स्कूल कक्षा 1 और 2 के विद्यार्थियों को होमवर्क नहीं दे सकते हैं. ना तो किसी प्रकार के होमवर्क का निर्धारण कर सकते हैं. साथ ही कक्षा 1 और 2 के विद्यार्थियों को भाषा और गणित के अलावे किसी अन्य विषय को पढ़ाना अनिवार्य नहीं करना है.
कक्षा 3 से लेकर 5 तक के छात्रों को भाषा और गणित के अलावे पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई पढ़ानी है. इससे ऊपर के बच्चों को एनसीईआरटी के द्वारा तय किए गए मानक के अनुरूप ही होमवर्क देना है.
ऐसा नहीं करने वाले विद्यालयों की मान्यता व संबद्धता समाप्त कर दी जाएगी. इस आशय की जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने लोकसभा में दी.
सांसद संजय सेठ के सवाल पर लोकसभा में मिला जवाब
रांची के सांसद संजय सेठ ने मानव संसाधन विकास विभाग से केंद्रीय व अन्य माध्यमों में पढ़ने वाले बच्चों को लेकर सवाल किए थे और विभिन्न प्रकार की जानकारी मांगी थी.
इसी आलोक में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यह जानकारी उपलब्ध कराई है. कहा गया है कि सभी राज्यों को चिल्ड्रेन स्कूल बैग पॉलिसी बनानी है. यह भी निर्धारित करना है कि बच्चों के बस्तों का बोझ उनके वजन व शरीर से अधिक नहीं हो. इतना ही नहीं यह भी तय करना है कि बच्चों को रट्टा मार पढ़ाई नहीं करानी है. उन्हें स्कूल से बाहर की दुनिया जो है, उसके ज्ञान से भी वाकिफ कराना है, समृद्ध करना है.
पाठ्य पुस्तकों में केंद्रित रहने के बजाय बच्चों के समग्र विकास को लेकर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना है. जिसमें उनका कौशल, शारीरिक व मानसिक विकास हो सके. इसके साथ ही विद्यालयों को यह भी निर्धारित करना है कि बच्चों को प्रतिदिन दो या तीन विषयों को पढ़ाया जाए और प्रति विषय उन्हें अधिक से अधिक समय मिले.
बच्चों में इस बार की अवधारणा और समझ विकसित करनी है कि वह पढ़ाई के साथ-साथ उसकी अन्य गतिविधियों में भी हिस्सा ले सकें. केंद्र सरकार ने स्कूल बैग के वजन को कम करने की पॉलिसी पर काम करने के लिए स्कूलों, शिक्षकों व अभिभावकों के लिए भी गाइडलाइन जारी किए हैं. उसी गाइडलाइन के अनुरूप काम करना है. इसके अलावा यह सुनिश्चित करना है कि राज्य स्तर पर एक समिति बने जो विभिन्न स्कूलों का औचक निरीक्षण करे तथा यह सुनिश्चित करें कि केंद्र सरकार के द्वारा दिए गए मानकों का पालन हो रहा है या नहीं.
समिति यह भी तय करेगी कि बच्चों के स्कूल बैग का वजन, उनकी पढ़ाई का तरीका, उनका शारीरिक-मानसिक विकास और व्यवहारिक दुनिया की शिक्षा दीक्षा उन्हें मिल रही है या नहीं.
इस मामले में विद्यालयों को भी है छूट दी गई है कि वे अपने स्वयं के सिस्टम को विकसित करें. बच्चों के प्रति लचीलापन रुख अख्तियार करें, ताकि बच्चों को न सिर्फ किताबी ज्ञान मिले, बल्कि उनकी रुचि और बाहरी दुनिया के ज्ञान से भी वो रूबरू हो सकें.