रांचीः अक्सर कहा जाता है लोकतंत्र संख्या बल का खेल है. मतदान के दिन और मतगणना के वक्त एक-एक वोट का कीमत प्रत्याशी से बेहतर कौन समझ सकता है.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में मात्र एक वोट किसी को सरताज बना सकता और किसी को सत्ता से बेदखल भी कर सकता है ऐसे अनेकों उदाहरण हैं.
पावर ऑफ वोट की बानगी पिछले चुनाव में भी देखने को मिली थी, जब कई विधानसभा इलाकों में हार जीत का अंतर हजार वोट से भी कम रहा था.
अनंत ओझा ने सिर्फ 702 वोट से हासिल की थी जीत-
राजमहल से भाजपा के अनंत ओझा ने सिर्फ 702 मतों से विजयी हुए थे. इन्होंने झामुमो के मो. ताजउद्दीन को पराजित किया था.
बोरिया विधानसभा सीट से भाजपा के ताला मरांडी ने झामुमो के लोबिन हेंब्रम को 712 मतों से पराजित किया था.
दुमका विधानसभा सीट पर लुइस मरांडी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 4914 मतों से पराजित किया था.
मधुपुर विधानसभा सीट से श्रम मंत्री राज पलिवार ने झामुमो के हाजी हुसैन अंसारी को 6,984 वोट से हराया था.
बगोदर में भाजपा के नागेंद्र महतो ने माले के विनोद सिंह को 4339 मतों से पराजित किया था. घाटशिला सीट से भाजपा के लक्ष्मण टुडू ने झामुमो के रामदास सोरेन को 6,403 वोट से हराया था.
पोटका सीट पर भाजपा की मेनका सरदार ने झामुमो के संजीव सरदार को 6,706 मतों से शिकस्त दी थी. सिसई विधानसभा सीट से वर्तमान स्पीकर दिनेश उरांव ने झामुमो के जेएस होरो को 2,593 मतों से पराजित किया था.
गुमला विधानसभा सीट से भाजपा के शिवशंकर उरांव ने झामुमो के भूषण तिर्की को 4,032 मतों से पराजित किया था. मनिका विधानसभा सीट पर भाजपा के हरिकृष्ण सिंह व राजद के रामचंद्र सिंह के बीच नजदीकी मुकाबला हुआ था. जिसमें हरिकृष्ण 1,083 मतों से विजयी हुए थे.