रांची: झारखंड में 514 आदिवासी युवकों के गलत तरीके से सरेंडर कराने का मामला फिर तूल पकड़ने लगा है. अब इस पूरे प्रकरण में नया मोड़ आ गया है. जब पुलिस के लिए काम करने वाले रवि बोदरा ने अदालत में एक आवेदन इंटरवेनर बनाने का अनुरोध किया.
आवेदन में उसने यह खुलासा किया है कि इस फेक सरेंडर करने कराने की जानकारी उस समय के कई बड़े अधिकारियों को थी. रवि बोदरा के टच में तत्कालीन गृह सचिव आईजी और तत्कालीन एसएसपी रैंक के अधिकारी थे. इन सभी ने संसाधन उपलब्ध कराए थे.
वाहन और कई अन्य सामान उपलब्ध कराए गए थे. साथ ही कहा था कि जो लोग सरेंडर करेंगे उन्हें सरकारी प्रावधान के तहत नौकरी और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. अदालत को दी गई जानकारी में कहा गया है कि विशेष शाखा के तत्कालीन आईजी भी रवि बोदरा के संपर्क में थे कई बार इस संबंध में उनके साथ बैठक भी हुई थी रवि बोदरा ने कई बड़े खुलासे किए हैं.
कौन है रवि बोदरा
रवि बोदरा पुलिस के लिए काम करता था. इसके संबंध कई आईपीएस अधिकारियों से रहे हैं. इसे यह जवाबदेही दी गई थी कि वह आदिवासी युवकों को बहला-फुसलाकर लाए और उनसे पैसे की वसूली भी करें. मूल रूप से चाईबासा का रहने वाला रवि बोदरा इंटर पास है. फेक सरेंडर के मामले में वह जेल जा चुका है. उसी ने यह खुलासा किया है
क्या है मामला
सीआरपीएफ और रांची पुलिस ने मिलकर आदिवासी युवकों को अवैध तरीके से सरेंडर कर आया और उन्हें हथियार भी उपलब्ध कराया गया था. उन सभी को पूरा ने जेल में रखा गया था. सभी कोबरा बटालियन के संरक्षण में थे. सरेंडर करने वालों से करीब ₹200000000 की उगाही की गई थी.
बाग में इस संबंध में रांची के लोअर बाजार थाना में मामला दर्ज हुआ था जिसमें एक निजी संस्थान के संचालक दिनेश प्रजापति और पुलिस के लिए काम करने वाले रवि बोदरा को जेल भेजा गया.
पुलिस अब भी इस मामले की जांच कर रही है लेकिन कई दस्तावेज मिटा दिए गए. पीड़ितों के बयान भी नहीं लिए गए ना ही उन अधिकारियों के बयान लिए गए जिन पर आरोप लगे हैं. अभी एक एसआईटी बनाई गई है जो पूरे मामले की जांच कर रही है.