राहुल मेहता,
रांची: “दुनिया हमेशा उज्जवल लगती है, जब आपने अभी कुछ ऐसा किया है जो पहले से नहीं था”. प्रख्यात साहित्यकार एवं कलाकार नील गिमन का यह वाक्य श्रद्धा मेहता के लिए प्रेरणा श्रोत है.
झारखण्ड की संस्कृति के समृद्धि के अनुरूप वैश्विक पटल पर इसे वांछित प्रख्याति नहीं मिली है. मधुबनी कला से पूरी दुनिया परिचित है और इसके कलाकारों को उचित मान-सम्मान भी मिला है. परन्तु संताली गांवों में प्रचलित और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा प्रमुखता से प्रयोग किया जाने वाला चादोर बडोनी और जदु पाटिया कला से इस पीढ़ी के अधिकतर लोग अनजान है.
सोहराई और कोहवर पेंटिंग को सरकारी संरक्षण का लाभ मिला है और यह कला शहर के दीवारों में नजर आने लगी है परन्तु कला का संरक्षण और संवर्धन केवल सरकारी प्रयास से संभव नहीं. शिल्पकारों और कलाकारों का लगन और जूनून ही किसी कला को जन-जन तक ले जा सकता है. झारखण्ड के अनेक शिल्पकार और कलाकार इसके लिए प्रयासरत भी हैं. इस कड़ी में कलाकारों के सूचि में एक नया और तेजी से उभरता नाम है “श्रद्धा मेहता”.
श्रद्धा ने सोहराई और कोहवर कला का कालीन में अनूठा प्रयोग किया. कालीन उद्योग के मंझे कारीगरों को भी पहले इस प्रयोग पर पूर्ण विश्वाश नहीं था पर उन्होंने श्रद्धा के लगन और आत्मविश्वास का साथ दिया और जन्म हुआ सोहराई और कोहवर कला के एक नए रूप का.
उसने जदु पाटिया कला को फोटो फ्रेम के परिधि से निकाल कर कढ़ाई द्वारा कपड़ों में उतारा. श्रद्धा का मानना है कि कला के रूप और शिल्प तकनीक भिन्न हो सकते हैं लेकिन आत्मा एक है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ क्राफ्ट एंड डिजाईन, जयपुर के स्नातकोत्तर की छात्रा श्रद्धा ने देश में प्रचलित विभिन्न शिप कला के साथ निम्न शिल्प तकनीकों के साथ भी सोहराई और कोहवर के साथ जदू पटिया कला का सफल प्रयोग किया है, जिसे वैश्विक स्तर पर प्रख्यात शिल्पकारों द्वारा सराहना मिल रही है-
- हस्तनिर्मित कालीन
- हैंड पेंटिंग- प्राकृतिक रंग
- मुद्रण के लिए ब्लॉक
- हस्त कढ़ाई आदि
झारखण्ड टेक्सटाइल और फैशन उद्योग से जुड़े कलाकारों एवं शिल्पकारों ने श्रद्धा के प्रयासों की सराहना करते हुए उसके सफलता की कमाना की है. उन्होंने आशा जताई है कि श्रद्धा का प्रयास टेक्सटाइल डिजाइनिंग में झारखंडी संस्कृति के प्रसार में मील का पत्थर बनेगा.