चंदन मिश्र (वरिष्ठ पत्रकार),
रांची: आज सुबह मोबाइल फोन खोलते ही एक बुरी और दुख देने वाली खबर ने अंदर से हिलाकर रख दिया. पत्रकार साथियों से सूचना मिली-पीटीआई के ब्यूरो चीफ पीवी रामानुजम नहीं रहे.
खुदकुशी करने की सूचना है. यह खबर सुनते ही मन बेचैन हो उठा. पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ. फिर कई साथियों से बात की और किसी तरह मन को ढाढ़स देने की कोशिश की.
आंखों के सामने रामानुजम का चेहरा घूमता रहा. वह मेरे अच्छे दोस्त ही नहीं एक शानदार व्यक्तित्व के धनी और नेकदिल इंसान थे. सबसे बढ़कर वह एक अच्छे पत्रकार थे.
आज की पत्रकारिता में जब हम किसी को अच्छा और ईमानदार पत्रकार कहते हैं तो इसके गंभीर मायने हैं. आज के समय पत्रकारिता में चपलता और चतुराई विशेष गुण हो चुके हैं, ऐसे माहौल में रामानुजम बिल्कुल अलहदा थे.
शायद वह इससे कहीं बढ़कर थे. वह अंतर्मुखी थे. न उधो का लेना न माधो को देना. उन्हें बस अपने काम से मतलब रहता था. उनके संपर्क में आनेवाले किसी भी पत्रकार साथी ने शायद ही कभी उन्हें ऊंची आवाज में बोलते या लड़ते-झगड़ते देखा सुना हो.
धीमी आवाज में मुस्कुरा कर बातें करना और बड़े अदब के साथ लोगों से पेश आना उनके खास गुण थे. झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष प्रो. दिनेश उरांव को जैसे ही यह दुखद खबर मिली तो वह नि:शब्द थे.
बस उन्होंने इतना ही कहा- एक अच्छे पत्रकार और नेक इंसान थे रामानुजम. राज्य बनने के कुछ बरसों के अंदर ही रामानुजम रांची में पीटीआई के ब्यूरो चीफ बनकर आए.
रामानुजम के साथ कई बार पत्रकारों की यात्राओं में रहने का अवसर मिला था. रामानुजम आखिर किस तरह के दबाव में थे जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा.
क्या उन पर काम का दबाव था? या कोई और वजह थी? अपने परिजनों से क्या कभी उन्होंने अपने मन की पीड़ा शेयर की? कुछ तो हमलोगों से शेयर करते. लेकिन दोस्त! आपसे इस तह की विदाई की उम्मीद नहीं थी. आप हमेशा याद आएंगे. नमन…