“सैनिक की अभिलाषा”
“सैनिक की अभिलाषा”
साथी कदम मिला लेना,
ओ! साथी कदम मिला लेना।
हो पंथ कठिन जब राह जटिल,
हो दिखने में मंजिल धूमिल,
भर ह्रदय साहस दिल में अटूट,
जब निकलूँ शत्रु पराजय को रण में,
तब साथी कदम मिला लेना,
ओ! साथी कदम मिला लेना।
कर मृत भावों को दिल में अपने,
कर विस्तृत बाहु, ले शस्त्र कर में,
टूट पड़ूँ जब मैं क्षण में,
कर प्रगाढ़, मेरी ललकार,
तब साथी कदम मिला लेना,
ओ! साथी कदम मिला लेना।
हो शत्रु-शीश की चाह प्रबल,
हो कम्पित जब धरा प्रतिपल,
करने को मर्दन शुन्य पूर्ण,
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जब निकल पडूँ बन शत्रु-काल,
तब साथी कदम मिला लेना,
ओ! साथी कदम मिला लेना।
हो पल-पल जब, पथ मेरा विकराल,
मिलें स्थल-स्थल पर मृतक चिन्ह,
करने अवलंबित, विजय स्तंभ,
जब निकलूँ, फहराने ध्वज विशाल,
तब साथी कदम मिला लेना,
ओ! साथी कदम मिला लेना।
अगर खो जाए कंठ से मेरा स्वर,
सो जाए ये, धरा-पुत्र, जब भूमि पर,
रख पाँव शीश पर तब मेरे,
तुम साथी कदम बढ़ा लेना,
ओ! साथी कदम बढ़ा लेना ,
मेरे साथी कदम बढ़ा लेना ।।
————————————— के के अवस्थी “बेढंगा”