मध्यप्रदेश: किसान भाईयों यदि आपकी सोयाबीन फसल पीली पड रही है. और सूखने की स्थिति में आ रही हो तो इस समस्या का प्रमुख कारण एवं नियंत्रण के लिए निम्म उपाय हैं.
सोयाबीन में इस वर्ष तना मक्खी एवं गर्डल बीटल का प्रकोप सामान्य से अधिक होने से सोयाबीन पीली पड रही है. सेमीलूपर की दूसरी पीढी की इल्लियों का प्रकोप भी अधिक देखने में आ रहा है जो पत्तियों के साथ-साथ फलियों को भी क्षति पहुंचा रही है.
वर्षा के पश्चात अनुकूल मौसम के कारण सोयाबीन में एन्थ्रेकनोज एवं राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट नामक रोगों का संक्रमण बहुत तेजी से फैला है जिसके कारण सोयाबीन के पौधे सूखने लगे हैं.
यह समस्या जल्दी पकने वाली प्रजातियों में ज्यादा देखी जा रही है जो कि परिपक्वता की स्थिति में है. इसके अतिरिक्त जहां भी तना मक्खी की इल्ली में तने में 25 प्रतिशत से अधिक सुरंग बना ली है और जहां गर्डल बीटल की इल्ली पूर्ण विकसित (लगभग पौन इंच) हो गई है, वहां रसायनों के छिडकाव के पश्चात भी आर्थिक लाभ होने की संभावना कम है.
उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने किसानों को सलाद ही है कि मध्यम एवं देरी से पकने वाली सोयाबीन प्रजातियों में या जहां कीट व रोग प्रारंभिक अवस्था में है निम्नलिखित उपाय करें.
तना मक्खी एवं बीटल के नियंत्रण हेतु कृषकों को सलाह है कि नियंत्रण हेतु बीटायायफ्लुथ्रिन प्लस इमिडाक्लोप्रिड 350 मि.ली./ है या थायमिथोक्सम प्लस लेम्बडा सायहेलोथ्रिन 125 मि.ली./ है का छिडकाव करें.
जहां केवल सेमीलूपर इल्लियों का प्रकोप हो रहा है वहां लेम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.9 एस.सी. (300 मि.ली./हैक्टे) या इन्डोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. (333 मि.ली.) या फ्लूबेन्डियामाईड 39.35 एस.सी. (150 मि.ली./है) या फ्लूबेन्डियामाईड 20 डब्ल्यू.जी. ( 275 मि.ली./है) का छिडकाव करें.
एन्थ्रेकनोज एवं राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट नामक रोगों के नियंत्रण हेतु टेबूकोनाझोल अथवा टेबूकोनाझोल प्लस सल्फर अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 डब्ल्यू.जी. अथवा हेक्जाकोनोझोल 5 ई.सी. से छिड़काव करें.
चूंकि सोयाबीन की फसल अब लगभग 70 दिन की और घनी हो चुकी है अत: रसायनों का अपेक्षित प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए 500 लीटर पानी प्रति हेक्टे. का प्रयोग अवश्य करें. जिन क्षेत्रों में अभी भी जल भराव की स्थिति है वहां पर किसान भाई शीघ्रातिशीघ्र अतिरिक्त जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें.