राजेश तिवारी,
रांचीः प्रदेश भाजपा फिलहाल तीन खेमों में बंटती नजर आ रही है. नयी कमेटी को लेकर अब बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं में चर्चा आम हो गई है कि पहले तो रघुवर और मुंडा का दो ही खेमा था, बाबुलाल के आने के बाद तीसरा खेमा भी बन गया है.
फिलहाल जो नई कमेटी बनी है उसमें उपाध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता जैसे कुल 18 महत्वपूर्ण पदों में से 13 पद रघुवर खेमे ने झटक लिए हैं.
वहीं अर्जुन मुंडा और बाबूलाल खेमे से मात्र दो-दो पदाधिकारी ही एडजस्ट किए गए हैं. दीपक प्रकाश, प्रदीप वर्मा व संगठन मंत्री की तिकड़ी ने एक तीर से कई शिकार किए हैं. रघुवर खेमे के अपने पसंदीदा लोगों को कमेटी में भर दिया है.
प्रदेश महामंत्री समीर उरांव, आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा तीनों को रघुवर खेमा का ही माना जाता है. उपाध्यक्ष में नील कंठ सिंह मुंडा, अन्नपूर्णा देवी, प्रणव वर्मा और अर्पणा सेन गुप्ता भी रघुवर खेमे से ही हैं.
इसी तरह प्रवक्ता में भी मिस्फिका हसन, प्रदीप सिन्हा, प्रतुल शाहदेव, अविनेश कुमार, अमित कुमार और कुणाल षाडंगी भी रघुवर खेमे के ही आते हैं. बाबूलाल खेमे से सिर्फ विनोद शर्मा को उपाध्यक्ष और सरोज सिंह को प्रवक्ता बनाया गया है.
वहीं राजपालिवार और गंगोत्री कुजूर को अर्जुन मंडा खेमे का माना जा रहा है. जबकि एक उपाध्यक्ष सुनील सिंह राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह के करीबी माने जाते हैं.
अर्जुन और बाबूलाल के बीच भी शह-मात का खेल
नई कमेटी को लेकर अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी के बीच भी आदिवासियों में लीड लेने के मुद्दे पर भी शह-मात का खेल कहीं न कहीं नजर आ रहा है.
वजह यह है कि अर्जुन मंडा की पकड़ गैर संताली आदिवासियों मे मानी जाती है जबकि बाबूलाल की पकड़ संताल में मानी जाती है. अब दोनों में से किसे आगे बढ़ाया जाए, इसको लेकर भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.
इस शह और मात के खेल में भाजपा को आदिवासियों के बीच का नुकसान होने की भी आशंका जताई जा रही है. बाबूलाल को आगे बढ़ाया गया तो संथाल में बीजेपी की पकड़ मजबूत होगी.
अगर अर्जुन मुंडा को तरजीह नहीं दी गयी तो कोल्हान और छोटानागपुर इलाको के गैर संथाली आदिवासी के बीच भाजपा को नुकसान हो सकता है.
बाबूलाल की इंट्री जिस ढ़ंग से हुई, अब उतना प्रभावी नहीं दिख रहा
इस तरह जिस तेजी और उत्साह के साथ बाबूलाल ने भाजपा में एंट्री मारी थी, उसी तेजी से उन्हें किनारे भी लगाने की कसरत कर दी गई है.
बाबूलाल मरांडी का न तो प्रभाव दिख रहा है और न ही संगठन उनके पीछे नजर आ रहा. विधायक दल का नेता की मान्यता दिलाने में बीजेपी दबाव बनाते हुए भी नजर नहीं आ रही है.
कमेटी पर न बाबूलाल का प्रभाव दिख रहा है और न ही कमेटी उनके पीछे दिख रही है. इसका उदाहरण यह भी है कि प्रदेश महामंत्री, उपाध्यक्ष और प्रवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सिर्फ बाबूलाल खेमे के दो ही पदाधिकारी हैं.
उनके करीबी अभय सिंह को महामंत्री बनाने की चर्चा थी, लेकिन वह भी नहीं हुआ. किंकर्तव्यविमूढ़ बाबूलाल अपने कार्यकर्ताओं को कोई ठोस आश्वासन भी नहीं दे पा रहे हैं.