रांची: झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ने वाले शिबू सोरेन और पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का जन्मदिन आज है. दोनों नेताओं के जन्मदिन पर उनके समर्थकों और पार्टी कार्यकताओं ने अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किया और केक कांट कर तथा गरीबों के बीच कंबल वितरण किया.
दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों का जन्मदिन आज होना महज संयोग ही नहीं बल्कि दोनो ने अपने पूरे जीवन में एक दूसरे के विरूद्ध राजनीतिक लड़ाई भी लड़ी है. शिबू सोरेन चार दशकों तक अलग झारखंड राज्य और महाजनी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जबकि बाबूलाल मरांडी ने भी अलग राज्य के लिए संघर्ष किय दोनों पूर्व मुख्यमंत्री ने हार से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी. शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. वह केंद्र सरकार में भी मंत्री रह हैं. अब वे राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं. कार्यकर्ताओं ने उन्हें गुरुजी नाम दिया है.
बाबूलाल मरांडी का भी आज जन्मदिन है. वे झारखंड का पहले मुख्यमंत्री रहे हैं. वे भी अटलजी की सरकार में केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. दोनों ही नेता अलग-अलग पार्टी से संबंध रखते हैं. 11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ में जन्मे शिबू सोरेन झारखंड में गुरुजी के नाम से मशहूर हैं. वे अबतक तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. शिबू 2005 में पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. पिता की मौत के बाद लकड़ी बेचकर घर चलाने वाले शिबू सोरेन एक आदिवासी नेता हैं. 1970 में सोरेन ने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत की. इस दौरान उन्होंने कई कैंपेन चलाए जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. उन्होंने 1975 में बाहरी लोगों को बाहर निकालने के लिए भी एक मुहिम चलाई. इस दौरान 11 लोगों की मौत हो गई थी. 11 जनवरी 1958 में गिरिडीह के कोडिया बैंग गांव में जन्मे बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे है. अब मरांडी झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष हैं. अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव से पूरी करने के बाद उन्होंने गिरिडीह कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मरांडी संघ परिवार से जुड़े. काफी समय तक संघ और आरएसएस में काम करने के बाद उन्हें विश्व हिन्दू परिषद का सचिव बनाया गया. संघ और आएसएस से जुड़ने से पहले मरांडी एक स्कूल टीचर थे. 1989 में उनकी शादी शांतिदेवी से हुई थी, दोनों का एक बेटा अनूप मरांडी भी था, जिसकी 2007 में नक्सली हमले में मौत हो गई थी.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन ने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था, लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार मिली थी. तीन साल बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को जीत हासिल हुई. इसके बाद वे लगातार 1989, 1991, 1996 और 2002 में चुनाव जीते. 2009 के उपचुनाव में तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से शिबू सोरेन झारखंड पार्टी के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर से 9000 से ज्यादा वोटों से हार गए थे और इस कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. सोरेन मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री भी रहे थे.
2014 में शिबू दुमका से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 23 जनवरी, 1975 को उन्होंने तथाकथित रूप से जामताड़ा जिले के चिरूडीह गांव में दिकू लोगों (आदिवासी जिन्हें दिकू नाम से बुलाते हैं) को खदेड़ने के लिए आंदोलन चलाया. आंदोलन में 11 लोग मारे गए थे. एफआईआर में शिबु सोरेन का नाम नहीं था, लेकिन दिसंबर 1979 में दाखिल की गई चार्जशीट में 69 लोगों का नाम दिया गया था जिनमें शिबु सोरेन भी शामिल थे. लेकिन, बाद में मामला ठंडा पड़ गया था. यह मामला तब गर्माया, जब सोरेन केंद्र सरकार में कोयला मंत्री थे. वारंट जारी होने के कारण उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
मार्च 2008 में न्यायालय ने शिबु सोरेन समेत 14 लोगों को इस मामले से मुक्त कर दिया था. शिबु सोरेन को 2006 में 12 साल पुराने अपहरण और हत्या के केस में दोशी पाया गया था. यह मामला उनके पूर्व सचिव शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या का था. आरोप था कि शशिकांत का दिल्ली से अपहरण कर रांची में मर्डर किया गया था. दिल्ली की एक अदालत ने 1994 के इस हत्याकांड में पांच दिसंबर 2006 को शिबु सोरेन को दोशी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में शिबु समेत पांचों दोषियों को 22 अगस्त 2007 को दोशमुक्त करार दिया था. फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 27 अप्रैल 2018 को वहां से भी शिबु सोरेन को बरी कर दिया गया.
वहीं बाबूलाल मरांडी ने संथाल के इलाके को अपना कार्य क्षेत्र के रूप में चुना. कई सालों से दुमका में काम कर रहे मरांडी को भाजपा ने 1991 में यहां से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया लेकिन वे हार गए. 1996 में एक बार फिर वे शिबु सोरेन से इस सीट पर मात खा गए. इसके बावजूद 1998 के विधानसभा चुनाव के लिए मरांडी को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था. इसी साल हुए आम चुनाव में वे जीतने में कामयाब रहे. 1999 में अटल सरकार में उन्हें वन पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया. एनडीए की सरकार में बिहार के 4 सांसदों को कैबिनेट में जगह दी गई. इनमें से एक बाबूलाल मरांडी थे. 2000 में झारखंड राज्य बनने के बाद एनडीए सरकार में बाबूलाल ने राज्य में सरकार बनाई. 2003 में राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के बाद सत्ता अर्जुन मुंडा को सौंप दी गई. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने कोडरमा सीट से चुनाव जीता. मरांडी ने 2006 में कोडरमा सीट सहित बीजेपी की सदस्यता से भी इस्तीफा देकर झारखंड विकास मोर्चा नाम से नई राजनीतिक पार्टी बनाई.
फिलहाल, वे कोडरमा से विधायक है. बाबूलाल मरांडी जब शिक्षक थे तब एक बार उन्हें शिक्षा विभाग में काम पड़ गया. जब वह काम कराने विभाग के कार्यालय में गए तो वहां के बड़े बाबू ने काम के एवज में उनसे रिश्वत देने की मांग की. इस बात को लेकर दोनों में काफी कहासुनी हुई और इसके बाद गुस्साए बाबूलाल ने शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया.