देहरादून: देश के तमाम राज्य सरकारों द्वारा जो नक्शा राजस्व अभिलेखों समेत अन्य योजनाओं में इस्तेमाल किया जा रहा है वह साल 1920 में तैयार किया गया था. एक शताब्दी बीत जाने के बाद अब नए भौगोलिक नक्शों की जरूरत महसूस हो रही है. इसके लिए केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड मॉर्डनाइजेशन प्रोग्राम (डीआईएलआरएमपी) की शुरुआत की है.
आपको बता दें की केंद्र सरकार ने कई राज्यों में नए सिरे से भौगोलिक सर्वे शुरू किया है. वर्ष 1920 के बाद किए जा रहे सर्वे की जिम्मेदारी सर्वे ऑफ इंडिया को सौंपी गई है. सर्वे आफ इंडिया के अधिकारियों के मुताबिक सर्वे में अत्याधुनिक ड्रोन की मदद ली जा रही है.
पहले चरण में हरियाणा, महाराष्ट्र व कर्नाटक में सर्वे भी शुरू हो गया है. उत्तराखंड, अंडमान निकोबार, गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत छह राज्यों में भी सर्वेक्षण कर भौगोलिक नक्शा तैयार किया जाएगा.
GIS, ETS से हो रहा सर्वे
सर्वे ऑफ इंडिया के विशेषज्ञों के मुताबिक लार्ज स्केल मैपिंग में जीआईएस के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन यानी ईटीएस जैसी तकनीक की मदद ली जा रही है. इस तकनीक के जरिए बेहद सूक्ष्म जानकारियां भौगोलिक सर्वे में जुटाई जा रही हैं.
स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं में कारगर
विशेषज्ञों के मुताबिक यह सर्वे स्मार्ट सिटी योजना के साथ ही पीडब्ल्यूडी, वन, सिंचाई, पंचायतीराज, पीडब्ल्यूडी समेत एक दर्जन विभागों के लिए बेहद लाभकारी होगा. नए मानचित्र तैयार होने से योजनाओं को तेजी से धरातल में उतारने में मदद मिलेगी.
1920 में भी तैयार हुए थे नक्शे
मौजूदा समय में जिन मानचित्रों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वे 1920 में बनाए गए थे. तब से अब तक भौगोलिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है. विशेषज्ञों के मुताबिक राज्य सरकाराें की ओर से इस संबंध में बहुत पहले पहल की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
डीआईएलआरएमपी के पहले चरण में हरियाणा, महाराष्ट्र कर्नाटक जैसे राज्यों का लार्ज स्केल मैपिंग के जरिये भौगोलिक सर्वे किया जा रहा है. जल्द ही यह काम पूरा हो जाएगा. अगले चरण में उत्तराखंड, गोवा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, अंडमान और निकोबार जैसे राज्यों में सर्वे किया जाएगा. इन राज्यों के साथ जल्द ही एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. डीआईएलआरएमपी के तहत सभी राज्यों में सर्वे किया जाना जरूरी है.
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