राहुल मेहता,
रांची: “मर्द को दर्द नहीं होता”. काफी तालियां बजी थी इस संवाद पर. आज भी गाहे- बगाहे यह सुनने को मिल जाता है, लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का आंकड़ा तो कुछ और कहानी बयां करता है.
मर्द को भी दर्द होता है, लेकिन वे बयां नहीं कर पाते और इसकी परिणति होती है आत्महत्या दर में वृद्धि.
- भारत में प्रतिवर्ष एक लाख महिलाओं में 4 महिलाएं आत्महत्या करती हैं, जबकि पुरुषों में यह संख्या 25.8 है.
- निमहांस, बंगलुरु के एक अध्ययन के अनुसार भारत में 9 प्रतिशत पुरुष किसी न किसी प्रकार में मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं, जबकि महिलाओं में यह मात्र 7.5 प्रतिशत है.
जीवन की चुनौतियों, समस्याओं, उत्पीड़न, बंधन, शोषण आदि की बात हो तो महिलाओं को इनका सामना अधिक करना पड़ता है, जो आत्महत्या एवं मानसिक बीमारी के कारणों में प्रमुख हैं. फिर पुरूषों की ऐसी अवस्था क्यों? कारण क्या हैं?
सामजिक मान्यताएं सामाजिक रूप से हमारे व्यवहार को सही और गलत ठहरती हैं. हमारा व्यवहार भी जाने-अनजाने इन्हीं मान्यताओं के अनुरूप होता जाता है.
प्यार, क्रोध, दुःख आदि लैंगिकता से परे मानवीय संवेदनाएं हैं. परन्तु मर्दांगनी की अवधारणा ने जहां पुरुष को प्यार और क्रोध के अभिव्यक्ति की खुली छुट दी. वहीं दुःख और आंसू को मर्दांगनी के विरुद्ध माना.
ऐसा तो है नहीं कि दुःख पुरूषों को होता ही नहीं? होता है, पर वे सामाजिक मान्यताओं के बेड़ियों में जकड़ कर इसे व्यक्त नहीं कर पाते. यहां तक की 76.9 प्रतिशत शादी-शुदा पुरुष अपनी व्यथा अपने जीवन साथी के साथ भी साझा नहीं करते.
कुछ तो मां और पत्नी के बीच सामजस्य बैठा ही नहीं पाते. नतीजा आत्महत्या और मानसिक बीमारी के रूप में सामने आता है. कुछ पुरुष गम गलत करने के लिए नशा को अपना साथी बना लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य, आर्थिक और पारिवारिक स्थति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विपरीत अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस (19 नवम्बर) चुपके से निकल जाता है. इसी के साथ निकल जाता है एक अवसर- पुरुषों के स्थति, उनके मानसिक स्वास्थ्य, उनके अनुकरणीय पहल, सामाजिक परिवर्तन के नयी सोच पर एक विमर्श की.
अध्ययन से यह स्पष्ट है कि महिलाओं पर हिंसा करने वाले पुरुष भी उसके दुष्प्रभाव से प्रभावित होते हैं. जबकि लैंगिक समानता जीवन साथी के साथ खुला संवाद स्थापित करने में सहायक होता है.
वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का मुख्य विषय पुरूषों का मानसिक स्वास्थ्य है. आप और हम उपरोक्त मुद्दों पर सोचें. कुछ कहा भी न जाये, चुप रहा भी न जाये का हल निकालें.