नीता शेखर,
आज की दुनिया बड़ी विचित्र है. आज ना रिश्तों की अहमियत है ना दोस्ती की, ना मां-बाप की बस कुछ है तो दिखावा केवल दिखावा. आज धन दौलत के लिए सगे बाल बच्चे भी अपने मां-बाप से रिश्ता तोड़ लेते हैं.
एक बार हम लोगों को अपने क्लब की तरफ से वृद्ध आश्रम जाने का मौका मिला. ऐसे तो वहां सभी वृद्ध लोगों को देख कर मन ऐसे परेशान हो उठा. दुनिया में कैसे कैसे बच्चे होते हैं जो अपने मां-बाप को वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं.
वहीं पर मेरी मुलाकात एक आंटी से हुई जो धनबाद से आई थी. जब हमने सबको नाश्ता दिया तो उन्होंने उस नाश्ते को अपने पास रख लिया.
जब हमने पूछा तो उन्होंने कहा अंकल के लिए रखा है, क्योंकि वह चल फिर नहीं सकते. उनकी आंखों में आंसू आ गए. हमारी भी आंखें नम हो गई, आंटी ने बताया.
अंकल कोलियरी में काम करते थे. वह जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए थे. उन्होंने धनबाद में बहुत ही खूबसूरत घर बनाया था.
उनका एक ही बेटा था जो धनबाद में डॉक्टर था. उसकी पत्नी भी डॉक्टर थी. अंकल ने सोचा था रिटायरमेंट के बाद हम सब बच्चे के पास रहेंगे पर नसीब को कुछ और ही मंजूर था. हम लोगों के आते ही बहू की भौंवे तन गई, वह हर दिन किसी न किसी बात को लेकर उलझ जाया करती थी.
बेटा के आते ही उसके कान भर दिया करती थी, बेटा गुस्सा होकर हम लोगों को डांटने लगता. हम चुपचाप सहन कर लेते थे. आखिर थे तो अपने ही बच्चे.
एक दिन हद हो गई जब हम टीवी देख रहे थे बहू ने आकर टीवी भी बंद कर दिया और हम सब पर चिल्लाने लगी. तभी बेटा भी आ गया और उसने भी हम लोगों को डांटना शुरू कर दिया. अब तो हम दोनों डर डर के जीने लगे थे. एक दिन बेटे ने आकर कहा पापा आप घर हमारे नाम कर दीजिए फिर आप भी आराम से रहिए, उसके पापा ने मना कर दिया उसने अपने पापा को जोर से धक्का दे दिया वह गिर पड़े. मैं किसी तरह उनको लेकर डॉक्टर के यहां पहुंचीं. डॉक्टर ने कहा झटके की वजह से बाएं तरफ में अटैक आ गया है.
अब हमारा जीवन तो और दुख भरा हो गया था. एक दिन बेटे और बहू ने मिलकर जबरदस्ती साइन करा लिया और अंगूठे का छाप भी ले लिया. फिर पता चला उसने सारी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ली थी. घर भी अपने नाम कर लिया था.
फिर एक दिन इलाज के नाम पर हम लोगों को यहां छोड़ गया
अंकल को फिर से अटैक आ गया अब वह बोल भी नहीं सकते थे. उन्हें ऐसा झटका लगा था जिससे वह बेड पर आ गए थे और वह भी किसी की वजह से नहीं, अपने बेटे की वजह से. मैं अकेली औरत क्या कर सकती थी. अब हम लोगों ने सोच लिया हमारा जीवन अब यही है. इतना कहते-कहते आंटी रो पड़ी. हम लोगों ने उन्हें शांत कराया फिर अंकल के लिए भी नाश्ता भिजवा दिया. हम लोगों को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दुनिया में ऐसे भी बेटे होते हैं जो अपनी मां बाप को इतना जख्म दे सकते हैं.
यह तो सिर्फ एक आंटी अंकल की कहानी थी. ऐसे ना जाने वहां कितनी कहानियां पड़ी हुई थी. हम सोच कर गए थे. उन लोगों को हंसने हंसाने पर वहां की व्यथा सुनकर हमारा मन ही दुखी हो गया.
फिर भी धन्य है वह मां बाप जो इतनी तकलीफ में जिंदगी गुजार रहे थे. मगर फिर भी अपने बच्चों के लिए दुआ ही दे रहे थे.
हमने कई तरह से उनका मनोरंजन किया. फिर आने का वादा करके वापस आ गए मन बार-बार यह कह रहा था,
” इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना
हम चले नेक रस्ते पर हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना.”……