रांची: ठंड के दिनों में जहां लोगों का घरों से बाहर निकलना मुहाल हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ कई परिवार ऐसे हैं, जिनकी रोटी को लेकर जिम्मेदारियों के आगे ठंड की चुनौती भी धरी की धरी रह जाती है. झारखंड की राजधानी रांची के मेन रोड में पत्तों का बाजार हर दिन सजता है. 10 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से सखुआ, कटहल, गुल्लर और जंगली डुमर के पौधों के पत्ते बिकते हैं.
हर दिन 4 से 5 डिग्री गिरते पारे के बीच ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं रात के 2 बजे ही पत्ते लेकर राजधानी के बाजारों में पहुंच जाती हैं और सुबह 9 बजे तक कारोबार कर वापस अपने घरों की ओर लौट जाती हैं. इनमें रांची के ग्रामीण इलाकों अनगढ़ा, ओरमांझी टाटीसिल्वे, मुरी और सिल्ली और तक कि बंगाल के झालदा से ग्रामीण जंगली इलाकों के पत्ते लेकर रांची के बाजारों में पहुंचती हैं, जहां पशुपालकों की जरूरतों के लिए इन पत्तों की खासी डिमांड है.
इसलिए करती है पत्तों का कारोबार
झालदा से डूमर के पत्ते बेचने रांची पहुंची 60 वर्षीय मुनिया देवी बताती हैं कि घर में 6 बेटियां हैं और पति की तबीयत सही नहीं रहती. लिहाजा 8 लोगों का पेट पालने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर है. पत्ते खरीदने पहुंचे पशुपालक जावेद बताते हैं कि जंगली पेड़ों के यह पौधे पशुओं की सेहत के लिए काफी फायदेमंद हैं. ताजे पत्ते मिलने से शहरी इलाकों के पशुपालकों को काफी सुविधा होती है. हालांकि इतनी मेहनत के बावजूद कमाई होती है तो 200 से ₹300 के बीच. इन ग्रामीण महिलाओं का संबंध भले ही खरीदारों के साथ मोल भाव का हो, लेकिन न्यूज़ 18 के कैमरे पर इनका पारिवारिक दर्द भी साफ झलक आया.