भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों में अग्निहोत्र (हवन) का बड़ा महत्व हैं. यज्ञ में घी के अतिरिक्त अन्य सुंगधित ,पौष्टिक , रोग नाशक पदार्थों में कस्तूरी ,केशर, जायफल,जावित्री, शक्कर,मधु ,गूगल, गिलोय (अमृता) शंखपुष्पी ,नीम के पत्ते ,कपूर,धुमना , आरवा चावल आदि मिलाकर अग्निहोत्र करने से वातावरण का विषाक्त प्रभाव या हानिकारक रोग के जीवाणु क्षीण एवं नष्ट होकर जीवनीय , पौष्टिक, शोधक तथा आरोग्यवर्धक गुण वातावरण से अधिक क्रियाशील हो जाता है जो रोगों तथा महामारियों को दूर करता हैं.
मद्रास के सेनेटरी कमिशनर डॉ कर्नल किंग आर.एम.एस. ने कॉलेज के विद्यार्थियों को उपदेश किया है कि घी और चावल में केशर मिलाकर जलाने से रोग कीट मर जाते हैं. इससे स्पष्ट होता हैं कि घी विषनाशक है इसके अतिरिक्त गौघृत रोग प्रतिरोधक है जो शोधक शक्ति को उत्पन्न करता है. पुनः फ्रांस के डॉ हेफ़क़ीन ने भी कहा हैं कि घी के जलाने से रोग कीट मर जाते है. विश्व का आदिग्रंथ ऋग्वेद 7/3/7 में स्पष्ट लिखा है तथा घृतवद भिश्च्य हत्यै.” यहां घृत एवं घृतयुक्त हवि का अग्निहोत्र में प्रयोग करना कहा गया है.
यहां वेदों में वातावरण को विनाशक तत्वों से शोधित करने के लिये घी से अग्निहोत्र करने का विधान बताया है. जर्मन विद्वान प्रो मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक फिजिकल रिलीजन में स्प्ष्ट लिखा हैं कि संसार के क्या नये और क्या पुराने जितने धर्म प्रचलित थे और है सबने यज्ञ का कोई न कोई प्रकार अवश्य स्वीकार किया हैं.
अथर्ववेद 12/2/11 में कहा गया है कि ” समिद्वो अग्नि सुपुना पुनाति ” अर्थात प्रज्वलित यज्ञाग्नि अपनी सुपावकता से वायुमंडल को पवित्र करती है. पुनः अथर्ववेद 7 /76/3 में लिखा है कि यज्ञाग्नि में सब प्रकार के ज्वर को दूर करने की क्षमता होती है. अतः प्रतिदिन हवन यज्ञ प्रातः एवं सांयकाल करना अनिवार्य हैं. अथर्ववेद 1/8/1 में कहा गया है कि यह हवि यातनादायक रोगों को बहा ले जाए , जैसे नदी झाग को. “इंद हविर्यातु घानन नदी फेनमिवा वहत.”
अतः इस समय वैश्विक महामारी ‘कोरोना वायरस’ के निवारण हेतु उक्त ओषधियो से घर -घर में अग्निहोत्र करना अनिवार्य हैं क्योंकि ऋग्वेद 1/24/11 में स्प्ष्ट कहा गया है कि ” गृहम गृहमुपतिष्ठाते अग्नि :”. अर्थात घर घर में यज्ञाग्नि पहुंचे. अतः हम सब समवाय रूप से प्रातः सायं प्रतिदिन अग्निहोत्र करें.