BNN DESK: भगवान राम की कथा महाकाव्य ‘रामायण’ में लिखा है कि भगवान राम ने लंका में राक्षसों के राजा रावण की क़ैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए वानर सेना की मदद से इस पुल का निर्माण किया था. भगवन राम अपनी पत्नी सीता से अत्यंत प्रेम करते थे और उन्होंने सीता तक पहुंचने के लिए महासागर पर 1500 किलोमीटर लम्बा पुल बना दिया, पूरी दुनिया में इससे बेहतर प्रेम की निशानी हो ही नहीं सकती. भारत के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया में रामायण बेहद लोकप्रिय है.
अमरीका के साइंस चैनल ने भारत-श्रीलंका को जोड़ने वाले पत्थर के पुल ‘रामसेतु’ पर कार्यक्रम का ट्विटर पर प्रोमो जारी किया था.
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प्रोमो में वैज्ञानिक टेस्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि रामसेतु के पत्थर करीब 7,000 साल पुराने हैं जबकि रेत 4,000 साल पुरानी है.
कार्यक्रम का प्रोमो पुल के मानव निर्मित होने का इशारा करता है.
क्या है कहानी
भगवन राम का सु्ग्रीव से मित्रता होने के बाद हनुमान जी वानरों की टोली लेकर सीता की खोज में चल पड़े. जब पता चल गया कि सीता को लंका का राजा रावण हरण करके ले गया है तो सबसे बड़ी चुनौती थी. वानर सेना को लेकर 1500 किलोमीटर लंबे समुद्र को किस तरह पार किया जाए.
पहले तो भगवन राम ने समुद्र का आवाहन किया, 4 दिनों तक घोर तपस्या की फिर भी जब समुद्र नहीं माना. भगवान राम को इससे सागर पर क्रोध आ गया। राम ने अपने दिव्य वाण को जैसे ही धनुष पर चढ़ाया सागर भागकर श्री राम के चरणों में आकर गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा. भगवान राम ने सागर को क्षमा दान दिया.
सागर ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो वानर हैं. यह भगवान विश्वकर्मा के पुत्र हैं और विश्वकर्मा के समान ही शिल्पकला में निपुण हैं. इनके हाथों से पुल का निर्माण करवाइए, मैं पत्थरों को लहरों से बहने नहीं दूंगा.
राम ने नल और नील के हाथों पुल निर्माण का काम शुरू करवाया. नल और नील को वरदान प्राप्त था कि उनके हाथों से फेंका गया पत्थर पानी में डूबेगा नहीं. बस फिर क्या था देखते ही देखते वानर सेना ने महज पांच दिनों में लंका तक पुल का निर्माण कर दिया.
उधर लंका में रावण इस खुशफहमी में जी रहा था कि सागर पर पुल बनाने में राम असफल होंगे लेकिन जब राम के पुल बनाकर लंका पहुंचने की खबर जब रावण को मिली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. रावण को लगने लगा कि अब युद्घ निश्चित है इसलिए सेना तैयार करने में जुट गया.
रामसेतु पर बहस नई नहीं है. साल 2005 में विवाद उस वक्त उठा जब यूपीए-1 सरकार ने 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े चैनल वाले सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी.
ये परियोजना बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच समुद्री मार्ग को सीधी आवाजाही के लिए खोल देती लेकिन इसके लिए ‘रामसेतु’ की चट्टानों को तोड़ना पड़ता.
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हिंदू संगठनों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से ‘रामसेतु’ को नुकसान पहुंचेगा. भारत और श्रीलंका के पर्यावरणवादी मानते हैं कि इस परियोजना से पाक स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी में समुद्री पर्यावरण को नुक़सान पहुँचेगा.
इस परियोजना का प्रस्ताव 1860 में भारत में कार्यरत ब्रितानी कमांडर एडी टेलर ने रखा था.
2005 में जब परियोजना को मंज़ूरी दी गई तब इसके विरोध में मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची जहां केंद्र की कांग्रेस सरकार ने याचिका में कहा कि रामायण में जिन बातों का ज़िक्र है उसके वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं.
रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी ऐसा ही हलफ़नामा दिया.
हिन्दुओं के प्रदर्शनों के बाद याचिका को वापस ले लिया गया. फिर तत्काल UPA सरकार ने ‘कंबन रामायण’ का हवाला देते हुए कहा कि भगवान राम ने खुद इस पुल को ध्वस्त कर दिया था. तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
अगर आप रामेश्वरम जाएं तो वहां ढेर सारे कुंड हैं. वहीं आपको लोग मिलेंगे जो आपको पानी में तैरने वाले पत्थर दिखाएंगे.
‘राम ने नहीं तो किसने बनाया?’
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इतिहासकार और पुरातत्वविद प्रोफ़ेसर माखनलाल कहते हैं, “इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है. ऐसे पत्थर को चुनकर ये पुल बनाया गया.”
वो बताते हैं “साल 1480 में आए एक तूफ़ान में ये पुल काफ़ी टूट गया. उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और साइकिल (पहियों) के ज़रिये इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे.”
वो कहते हैं कि अगर इसे राम ने नहीं बनाया तो किसने बनाया.
लेकिन उन दावों का क्या जो कहते हैं कि रामायण और इसके पात्र कल्पना मात्र हैं?
वो कहते हैं, “क्या रामायण अपने आपको मिथिकल कहता है? ये हम, आप और अंग्रेज़ों ने कहा है.”
“दुनिया में ओरल ट्रैडिशन भी होती हैं. अगर आप हर चीज़ का लिखित प्रमाण मानेंगे तो उनका क्या होगा जो लिखते पढ़ते नहीं थे.”