प्रमुख संवाददाता : उपेंद्र कुमार सिंह
झारखंड : झारखंड में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को बड़ा झटका लगने के बाद राज्य में राजद दो भागो में बांट चुका है. बिहार या झारखंड में राजद में हुई इस टूट की घटना के बाद नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल लोकतांत्रिक के गठन के बाद, केंद्रीय अध्यक्ष गौतम सागर रांणा की इस पार्टी ने जो संकेत दिए, वह झारखंड की राजनीति में विधानसभा चुनाव से पहले अलग ही विशात बिछाने की तैयारी के रूप में देखा जा सकता है. यहा पर कहा जा सकता है कि दल छोड़के ना केवल राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाया बल्कि उनकी बातों से झलक रहा है कि वे झारखंड में झामुमो और राष्ट्रीय जनता दल की प्रगाढ़ता को देखते हुए वे विपरीत कदम उठाने को भी तैयार दीख रहे है. और राजद लोकतांत्रिक द्वारा ये भी कहां जा रहा है कि किस दल के साथ गठबंधन करना ठीक होगा, इसके लिये मंथन चल रहा है. अभी सभी पार्टियां हमारे संपर्क में हैं, यानी उनके पास कई विकल्प है जिसमें वे वेट एन्ड वॉच की स्थिति में है. और पार्टी की ओर से कहां भी जा रहा है कि वे नवोदित दल है और जनता का मूड भांप कर निर्णय लेंगे क्योंकी कई दल अपनी बिचार धारा के विपरित कृत्य कर रहे हैं.
राजद लोकतांत्रिक को भाजपा भा सकता है :
सूत्रो की माने तो राजद लोकतांत्रिक एक विकल्प भाजपा को भी मान के चल रही है. लेकिन खुले तौर पर कुछ भी कहने से बच रही है, क्योंकि इस दल से कुछ ऐसे भी सदस्य है जिन्हें भाजपा से परहेज है. और उनके विदकने का डर भी सत्ता रहा है. इसलिए राजद लोकतांत्रिक अकेले चुनाव लड़ने के बाद भी आगामी सरकार को बाहर भीतर से समर्थन कर सकती है.
एक विकल्प बाबुलाल की आस :
अगर बाबुलाल कांग्रेस के नाव पर सवार होकर मुख्यमंत्री का चेहरा बन विधानसभा की चुनावी समर में उतर जाते है, तो राजद लोकतांत्रिक के लिये कांग्रेस को समर्थन करना ही पहला विक्लप होगा. लेकिन बाबुलाल कोंग्रेसी बनेंगे तब न या फिर कांग्रेस मुख्यमंत्री के चेहरा के रूप में बाबुलाल को स्वीकार करेंगी तब न.
झारखंड में लालू प्रसाद की राजद की स्थिति :
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है लालू प्रसाद यादव कि यह पार्टी झारखंड में बेहतर स्थिति में नहीं है और विधानसभा चुनाव में इसकी भी मन ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने की रही है. लेकिन सुप्रीमो लालू प्रसाद के निर्देश के आलोक में ही कोई फैसला लिया जाएगा, किसी भी सूरत में हेमंत सोरेन अपने समर्थन के लिए राजद को मना लेंगे और हेमंत के नेतृत्व में ही राजद चुनाव लड़ेगी. इसके अलावा उसके पास ज्यादा विकल्प नहीं है.
लोकसभा चुनाव में 14 सीटें ही थी लेकिन विधानसभा चुनाव में 81 विधानसभा सीटें हैं और उसमें राजद अपने पसंद के अनुसार लड़ाने का मौका नहीं है. जहां झामुमो का अपना जनाधार नहीं है. वहां पर भाग्य आजमा सकती है, कई ऐसी सीटें हैं यहां से झामुमो ने चुनाव नहीं लड़ा है या झामुमो का जनाधार नहीं है. ऐसी परिस्थिति में मजबूरी ही सही झामुमो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के लिए सीट छोड़ देगी. चुनाव परिणाम के बाद बनने वाली सरकार में अगर हेमंत सोरेन बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर लेते हैं तो राष्ट्रीय जनता दल को सत्ता में शामिल करके अपनी सरकार को बेहतर स्थिति में रख सकते हैं. बाकी दल अगर हेमंत का समर्थन करने को राजी हो जाए या फिर कांग्रेस भी हेमंत सोरेन के साथ खड़ी हो जाए. और गठबंधन कर चुनाव लड़े तब राष्ट्रीय जनता दल के वजूद में कटौती हो जाएगी और मनचाही सीटें उसे नहीं मिल पाएगी.
कुल मिलाकर झामुमो जितनी असमंजस में है, कांग्रेस भी उतनी ही असमंजस में है और राजद का असमंजस भी बरकरार है. फिलहाल सितंबर माह तक स्पष्ट हो जाएगा कि कौन दल किस पाले में जाएगा या फिर अकेले ही चुनावी समर में कूद जाएगा. यह देखना दिलचस्प होगा और झारखंड की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है .