कोलकाता: कोरोना का कहर,लॉकडाउन में फंसे अनगिनत लोग, प्रवासी मजदूरों का दर्द, जी हां यह है साल 2020 की वो दर्द भरी दास्तां जो शायद ही किसी के जहन से कभी मिट पाए. हर साल शरद नवरात्र में देश भर में एक अलग ही रौनक नजर आती थी. लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते त्योहार भी रस्म अदायगी से मनाए जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल को छोड़कर अधिकांश राज्यों में सार्वजनिक दुर्गा पूजा की अनुमति नहीं दी गई है. वहीं कोलकाता के केशोपुर प्रफुल्ल कानन पंडाल में देवी मां की प्रतिमा के साथ ही प्रवासी मजदूरों का दर्द, तूफान की तबाही और कोरोना के प्रकोप को दिखाने वाली मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं. बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेने वाली इन मूर्तियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई हैं.
कानन पंडाल में लगी प्रवासी मजदूरों की प्रतिमाएं लॉकडाउन के दौरान अपनी कर्मभूमि छोड़कर भूख-प्यास, गर्मी और पैदल चल जन्मभूमि लौटते दर्द को बखूबी बयां कर रही हैं. इसमें सूटकेस पर सोते हुए बच्चे की प्रतिमा भी लगाई गई है, जिसकी तस्वीर लॉकडाउन के दौरान काफी चर्चा में रही थी. वहीं अब पंडाल में लगाई सूटकेस पर सोते बच्चे की तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.
लॉकडाउन की वजह से उद्योग की गति थम गई. काम बंद हो गए, खाने के लाले पड़ने लगे, ऐसी स्थिति में प्रवासी श्रमिक अपने-अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हो गए थे. कुछ लोग हजारों किलोमीटर पैदल चले, कुछ ने साइकिल या रिक्शे से यात्रा पूरी की. कोरोना संकट के चलते लागू लॉकडान के बीच गर्मी, भूख-प्यास और थकान के बावजूद पैदल चलते प्रवासी मजदूरों की तस्वीरें देख दिल दहल उठता था. पंडाल में लगी मूर्तियां प्रवासी मजदूरों के उसी बुरे वक्त की याद दिलाती हैं. ये तस्वीरें उसी दर्द को बयां करती हैं. बता दें कि देश भर में लगभग हर बड़े शहर से प्रवासी मजदूर अपने अपने घरों को लौटने के लिए सड़कों पर आ गए थे. इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को पैदल चलता देख रेलवे ने उनके लिए श्रमिक विशेष ट्रेनें चलवाईं थीं ताकि सभी को सुरक्षित घर पहुंचाया जा सके.
कोरोना काल में बिहार की 15 वर्षीय बेटी ज्योति कुमारी अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठा कर हरियाणा के गुरुग्राम से 1200 किलोमीटर की दूरी तय कर बिहार के दरभंगा पहुंची थी. ज्योति की तस्वीरें और कहानी जब मीडिया में आई, तो पूरे देश ने इस बेटी की हिम्मत की जमकर सराहना की थी. ज्योति की कहानी इतनी वायरल हुई थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ने भी ट्वीट कर सराहना की थी.
अपनी लंबी यात्राओं के दौरान कुछ मजदूर बीमार पड़े, तो कुछ कर्मभूमि से जन्मभूमि जाने के लिए निकले तो थे, लेकिन घर वो नहीं, उनके शव पहुंचे. वहीं कुछ थक कर आराम करने के लिए रेल की पटरियों पर सोए, तो उनमें से कुछ कभी उठे ही नहीं. उनकी यात्रा हमेशा के लिए वहीं समाप्त हो गई. महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पटरियों पर सोते 19 प्रवासी मजदूरों की मालगाड़ी से कटकर मौत हो गई थी. उसी दृश्य को दर्शाती प्रतिमा.
पंडाल में एक ऐसे शख्स की प्रतिमा लगी है, जिसने श्रमिकों का जीवन बदलने के साथ ही आम भारतीय को सोच बदलने के लिए मजबूर किया. लोगों को मदद के हाथ आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. संकट के समय में बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने प्रवासियों का दर्द कम करने की हर संभव कोशिश की. हजारों प्रवासी मजदूरों, छात्रों और विदेश में फंसे लोगों को उनके घर पहुंचाया. कंधों से हल चलातीं बेटियों के घर ट्रैक्टर पहुंचाया. पंडाल में सोनू सूद की यह प्रतिमा उनके प्रयासों को सम्मानित करने के लिए लगाई गई है.