रांची: आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण से जान जाने का डर, लॉकडाउन से नौकरी खोने की व्यथा और ऐसे संकट में अपने परिवार जनों से मिलने की भावुकता से प्रवासी मजदूरों को अपने -अपने राज्यों को लौटने के लिए तमाम परेशानियों को झेलना पड़ा है.
मजदूरों के सामने आज भारी आर्थिक संकट तो है ही, उन्हें अपने गांव-समाज में संदिग्धता से बचने के लिए आइसोलेशन और क्वारंटीन व्यवस्था से होकर गुजरना पड़ रहा है. राज्य में अब जो कोविड-19 पॉजिटिव पाये जा रहे है, वे ज्यादातर प्रवासी ही है. देश के विभिन्न हिस्सों से करीब सवा तीन लाख से अधिक प्रवासी झारखंड लौट आये है, वे अब जल्दी रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में नहीं जाने वाले है, इन्हें काम में नियोजित करना झारखंड सरकार की दूसरी बड़ी जिम्मेदारी है. पहली जिम्मेदारी तो उनके स्वास्थ्य बिन्दुओं को लेकर है, जिसमें हेमंत सोरेन की सरकार पूरी संजीदगी के साथ लगी हुई है. अब तक लगभग सवा तीन लाख से अधिक प्रवासी मजदूर झारखंड लौटे हैं और जल्द ही क्वारंटाइन अवधि भी पूरी हो जाएगी, तब उनके सामने रोजगार का सवाल अहम होगा.
सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि राज्य सरकार को स्वास्थ्य देखरेख के साथ-साथ प्रवासी मजदूरों को स्किल मैपिंग का भी काम करवाते हुए डेटाबेस तैयार करने का काम करना होगा,ताकि उनकी योग्यता, उनके अनुभव, उनकी रुझान का फायदा झारखंड के उद्यम-व्यापार को मिल पाये. उन्होंने कहा कि सरकार को मनरेगा से ऊपर उठकर सोंचने की जरुरत है, स्किल का फायदा लेने की जरुरत है. मनरेगा का भी दायरा बढ़ाया जाना लाभप्रद होगा,क्योंकि बड़ी तादाद में मजदूरों की वापसी का अभियान जारी है.
बिरसा हरित क्रांति योजना एक अच्छी शुरुआत है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा योजना का उदघाटन झारखंड में मील का पत्थर साबित होगा, योजना से न सिर्फ 3 करोड़ मानव दिवस का सृजन होगा, बल्कि ग्रीन एसेट भी तैयार होगा. योजना के अंतर्गत पहले साल में 40 लाख फलदार पौधे लगाने का कार्यक्रम है. 100 फलदार पेड़ों की यूनिट एक परिवार को 50 हजार रुपये सलाना की आय भी निर्मित करेगी. यह योजना मनरेगा के अंतर्गत है जो ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित होगी. प्रवासी मजदूरों को उनके स्किल और अनुभव के अनुरूप काम देना झारखंड सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी, इसके लिए डेटाबेस की तैयारी को प्राथमिकता देने का समय है.