खास बातें:-
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झामुमो ने बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, सरायकेला और डुमरी सीट में अब तक अपना कब्जा रखा है बरकार
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डेढ़ दशक से बीजेपी के खाते में रही हैं रांची, जमशेदपुर पूर्वी, खूंटी, झारिया और कांके विधानसभा सीट
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15 साल से आजसू के खाते में रामगढ़, वामदल के खाते में निरसा और झाविमो के खाते में पोड़ैयाहाट सीट रही
रांचीः पांचवी विधानसभा के गठन के लिए हो रहा चुनाव कई मायनों में दिलचस्प और रोचक होने की संभावना है. इस चुनाव से कई परंपराएं टूटने की संभावनाएं भी दिख रही है. देखने वाली बात यह होगी कि जिन सीटों पर 15 साल से एक ही दल का कब्जा रहा है, क्या उन सीटों पर दूसरे दल का परचम लहर पाएगा या नहीं.
विधानसभा की 81 सीटों में से 13 सीटें ऐसी हैं, जिस पर पिछले 15 साल से एक ही दल का कब्जा रहा है. इन दलों के किलों को ध्वस्त करना दूसरे दल के लिए चुनौती बन गई है.
झामुमो के पांच गढ़ को भेदना बड़ी चुनौती
झामुमो के पांच गढ़ यानि बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, सराय़केला और डुमरी सीट को अब तक 15 साल में कोई भी दल अपने खाते में नहीं कर पाया है. बरहेट से वर्तमान में हेमंत सोरेन विधायक हैं. लिट्टीपाड़ा भी पिछले डेढ़ दशक से झामुमो के खाते में ही है. शिकारीपाड़ा से नलिन सोरेन हैट्रिक लगा चुके हैं. डुमरी से झामुमो के जगन्नाथ महतो भी लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. सरायकेला में झामुमो को हेवीवेट चंपई सोरेन को अब तक कोई शिकस्त नहीं दे पाया है.
रांची, पूर्वी जमशेदपुर, खूंटी, झरिया और कांके बीजेपी का अभेद गढ़
रांची, पूर्वी जमशेदपुर, खूंटी, झरिया और कांके बीजेपी का अभेद गढ़ है. इन सीटों पर पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी का कब्जा रहा है. कांके विधानसभा सीट बीजेपी के लिए सेफ सीट मानी जाती है. हालांकि इस सीटे से बीजेपी के उम्मीदवार बदलते रहे लेकिन सीट बीजेपी के खाते में ही है. इस पर बीजेपी ने समरीलाल पर दांव लगाया है.
इसी तरह रांची सीट से सीपी सिंह हैट्रिक लगा चुके हैं. पूर्वी जमशेदपुर से सीएम रघुवर दास और खूंटी से नीलकंठ सिंह मुंडा जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं.
वहीं झरिया सीट भी पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी के ही खाते में हैं. दो बार कुंती सिंह और एक बार संजीव सिंह ने जीत हासिल की. इस बार बीजेपी ने संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को मैदान में उतारा है.
रामगढ़ में आजसू, पोड़ैयाहाट में झाविमो और निरसा में वामदल का कब्जा
रामगढ़ सीट पिछले डेढ़ दशक से आजसू के ही खाते में है. चंद्रप्रकाश चौधरी भी इस सीट से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. सांसद बनने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता चौधरी को मैदान में उतारा है. पोड़ैयाहाट सीट पिछले डेढ़ दशक से झाविमो के कब्जे में रही है. इस सीट से लगातार तीन बार प्रदीप यादव ने जीत हासिल की है.
इसी तरह वामदल ने भी निरसा सीट को अपने खाते में कर रखा है. यहां से 2005 में वामदल की अर्पण सेन गुप्ता ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 2009 और 2014 में अरूप चटर्जी ने जीत हासिल की.