पदमा सहाय
रांचीः बचपन बचाओ बालश्रम हटाओ ये वो स्लोगन है जिसे सरकार बाल मजदूरी उन्मूलन के लिए प्रयोग करती आई है .
आर्थिक रूप आए कमजोर पृष्टभूमि के बच्चो को स्कूल तक लाने के लिए सरकार भरसक प्रयास भी कर रही है.
लेकिन हकीकत कुछ और ही है.
झारखंड में 14 साल से कम उम्र के लगभग 91000 हजार बच्चे मजदूरी करते हैं .
इसमें लगभग 43 हजार घरेलू नौकर का काम करते हैं.
छोटे मोटे ढाबों से लेकर बड़े कारखानों तक बाल मजदूरों की लंबी फेहरिस्त है .
सालभर में तीन हजार को ही मिला रोजगार
2019 तक श्रम विभाग ने सभी जिलों में 25 रोजगार मेला लगाया.
जिसमें विभिन्न कंपनियों व सेवा क्षेत्र में सिर्फ 3242 लोगों को ही रोजगार मिला.
बावजूद इसके गढ़वा और चाईबासा में किसी को भी रोजगार नहीं मिला.
दूसरी चौंकाने वाली बात यह भी है कि राष्ट्रीय नियोजन सेवा के तहत किसी क्षेत्र में दो फीसदी से अधिक लोगों को रोजगार नहीं मिला है.
21 लाख लोगों के पास इनकम का कोई साधन नहीं
आंकड़ों की मानें तो झारखंड में 21 लाख लोगों के पास इनकम का कोई साधन ही नहीं है.
इनकम के साधन पर आफत होने के साथ रोजगार देने का दावा भी कोसों पीछे छूट गया है.
सरकारी नौकरियां भी कहीं न कहीं तकनीकी पेंच में फंसी हुई हैं.
निजी क्षेत्र में भी लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है.
डेढ़ लाख लोग किराया व पेंशन पर हैं डिपेंड
डेढ़ लाख लोग ऐसे हैं जिनके पास कोई काम नहीं है, वे किराया, पेंशन और ब्याज की राशि से अपनी आजीविका चला रहे हैं.
ढ़ाई लाख लोग गली मुहल्लों में फेरी लगाकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं.
इलेक्ट्रिशियन व मैकेनिक का काम करने वालों की संख्या लगभग तीन लाख है.
इसके अलावा अन्य कामों में लगभग 49 हजार लोग लगे हुये हैं.