★आपका दिन शुभ मंगलमय हो.★
●कलियुगाब्द……..5122
●विक्रम संवत्…….2077
●शक संवत्………1942
●मास………भाद्रपद
●पक्ष………..शुक्ल
●तिथी……….पंचमी
संध्या 05.07 पर्यंत पश्चात षष्ठी
●रवि…….दक्षिणायन
●सूर्योदय..प्रातः 06.06.58 पर
●सूर्यास्त..संध्या 06.52.40 पर
●सूर्य राशि…….सिंह
●चन्द्र राशि……तुला
●गुरु राशि……..धनु
●नक्षत्र………..चित्रा
संध्या 05.04 पर्यंत पश्चात स्वाति
●योग………… ..शुभ
प्रातः 06.41 पर्यंत पश्चात ब्रह्मा
●करण………….बव
प्रातः 06.29 पर्यंत पश्चात बालव
●ऋतु…………..वर्षा
●दिन………….रविवार
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★★ आंग्ल मतानुसार :-
23 अगस्त सन 2020 ईस्वी.
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★★ तिथि विशेष (व्रत/पर्व) –
◆◆ ऋषि पंचमी :-
◆ ऋषि पञ्चमी का व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी को सम्पादित होता है. प्रथमत: यह सभी वर्णों के पुरुषों के लिए प्रतिपादित था, किन्तु अब यह अधिकांश में नारियों द्वारा किया जाता है. हेमाद्रि ने ब्रह्माण्ड पुराण को उद्धृत कर विशद विवरण उपस्थित किया है. व्यक्ति को नदी आदि में स्नान करने तथा आह्लिक कृत्य करने के उपरान्त अग्निहोत्रशाला में जाना चाहिए, सातों ऋषियों की प्रतिमाओं को पंचामृत में नहलाना चाहिए, उन पर चन्दन लेप, कपूर लगाना चाहिए, पुष्पों, सुगन्धित पदार्थों, धूप, दीप, श्वेत वस्त्रों, यज्ञोपवीतों, अधिक मात्रा में नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए और मन्त्रों के साथ अर्ध्य चढ़ाना चाहिए.
◆◆ यह व्रत कैसे करें :-
◆ प्रातः नदी आदि पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें.
◆ तत्पश्चात घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं. फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करें.
◆ इसके बाद गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें.
◆◆ तत्पश्चात निम्न मंत्र से अर्घ्य दें:-
◆ ‘कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः.
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥
◆ अब व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें.
◆ तदुपरांत अकृष्ट (बिना बोई हुई) पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि का आहार लें.
◆ इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवें वर्ष में सप्त ऋषियों की सोने की सात मूर्तियां बनवाएं.
◆ तत्पश्चात कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करें.
◆ अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें.
◆◆ ऋषि पंचमी की व्रतकथा :-
◆ विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था. उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी. विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया. दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई. दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे.
◆ एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया. कन्या ने सारी बात मां से कही. मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?
◆ उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी. इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे. इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया. इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं.
◆ धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है. वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है. यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी.
◆ पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया. व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई. अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला.
◆ शास्त्रों के अनुसार ऋषि पंचमी पर हल से जोते अनाज आदि का सेवन निषिद्घ है. ऋषि पंचमी के अवसर पर महिलाएं व कुंआरी युवतियां सप्तऋषि को प्रसन्न करने के लिए इस पूर्ण फलदायी व्रत को रखेंगी. पटिए पर सात ऋषि बनाकर दूध, दही, घी, शहद व जल से उनका अभिषेक किया जाता है, साथ ही रोली, चावल, धूप, दीप आदि से उनका पूजन करके, तत्पश्चात कथा सुनने के बाद घी से होम किया जाएगा. जो महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखेंगी, वे सुबह-शाम दो समय फलाहार कर ही व्रत को पूर्ण करेंगी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में हल से जुता हुआ कुछ भी नहीं खाते हैं. इस बात को ध्यान में रखकर ही व्रत किया जाएगा. वे केवल फल, मेवा व समां की खीर, मोरधान से बने व्यंजनों को खाकर व्रत रखेंगी.
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★ शुभ अंक………….5
★ शुभ रंग…………लाल
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★★ अभिजीत मुहूर्त :-
दोप 12.03 से 12.54 तक .
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★★ राहुकाल :-
संध्या 05.13 से 06.48 तक.
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★★ दिशाशूल :-
पश्चिमदिशा – यदि आवश्यक हो तो दलिया, घी या पान का सेवनकर यात्रा प्रारंभ करें.
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★★ चौघडिया :-
प्रात: 07.44 से 09.18 तक चंचल
प्रात: 09.18 से 10.53 तक लाभ
प्रात: 10.53 से 12.28 तक अमृत
दोप. 02.03 से 03.37 तक शुभ
सायं 06.47 से 08.12 तक शुभ
संध्या 08.12 से 09.37 तक अमृत
रात्रि 09.37 से 11.03 तक चंचल .
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★★ आज का मंत्र :-
.. ॐ अलम्पटाय नम: ..
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★★ सुभाषितानि :-
शीलं रक्षतु मेघावी प्राप्तुमिच्छुः सुखत्रयम् .
प्रशंसां वित्तलाभं च प्रेत्य स्वर्गे च मोदनम् ॥
◆ अर्थात :- प्रशंसा, वित्तलाभ और स्वर्ग का आनंद – ये तीन सुख पाने की इच्छा रखनेवाले बुद्धिमान इन्सान ने शील का रक्षण करना चाहिए.