रांची: आज का पंचांग, आपका दिन शुभ (मंगलमय) हो.
====================
●कलियुगाब्द…5122
●विक्रम संवत्..2077
●शक संवत्….1942
●मास………आषाढ़
●पक्ष………….कृष्ण
●तिथी………..षष्ठी
रात्रि 09.15 पर्यंत पश्चात सप्तमी
●रवि………उत्तरायण
●सूर्योदय..प्रातः 05.41.00 पर
●सूर्यास्त..संध्या 07.12.06 पर
●सूर्य राशि……..वृषभ
●चन्द्र राशि……..कुम्भ
●गुरु राशि………मकर
●नक्षत्र………….धनिष्ठा
दोप 04.30 पर्यंत पश्चात शतभिषा
●योग……………वैधृति
प्रातः 10.08 पर्यंत पश्चात विष्कुम्भ
●करण…………..गरज
प्रातः 08.35 पर्यंत पश्चात वणिज
●ऋतु………….ग्रीष्म
●दिन………….गुरुवार
====================
★★ आंग्ल मतानुसार :-
11 जून सन 2020 ईस्वी ।
====================
★★ अभिजीत मुहूर्त :-
प्रातः 11.59 से 12.53 तक।
====================
★★ राहुकाल :-
दोपहर 02.06 से 03.47 तक।
====================
★★ दिशाशूल :-
दक्षिणदिशा – यदि आवश्यक हो तो दही या जीरा का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें.
====================
★ शुभ अंक…….2
★ शुभ रंग…..पीला
====================
★★ चौघडिया :-
प्रात: 10.45 से 12.25 तक चंचल
दोप. 12.25 से 02.06 तक लाभ
सायं 05.26 से 07.06 तक शुभ
सायं 07.06 से 08.26 तक अमृत
रात्रि 08.26 से 09.46 तक चंचल |
====================
★★ आज का मंत्र :-
।। ॐ वेदपुरुषाय नम: ।।
====================
★★ सुभाषितम् :-
तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गः तृणं शूरस्य जीवनम् ।
जिताक्षस्य तृणं नारी निस्पृहस्य तृणं जगत् ॥
◆ अर्थात :- उदार पुरुष को धन, शूर को मृत्यु, विरक्त को नारी, और निस्पृही को जगत तिनके के समान है ।
====================
★★ आरोग्यं :-
◆◆ कटेरी /कंटकारी परिचय, गुण धर्म और औषधीय प्रयोग:-
◆ कटेरी /कंटकारी एक अत्यंत परिप्रसरी क्षुप हैं जो भारवतर्ष में प्राय: सर्वत्र रास्तों के किनारे तथा परती भूमि में पाया जाता है. लोक में इसके लिए भटकटैया, कटेरी, रेंगनी अथवा रिंगिणी; संस्कृत साहित्य में कंटकारी, निदग्धिका, क्षुद्रा तथा व्याघ्री आदि नाम दिए गए हैं. इसका लगभग र्स्वागकंटकमय होने के कारण यह दु:स्पर्श होता है. कांटों से युक्त होते हैं.
पत्तियां प्राय: पक्षवत्, खंडित और पत्रखंड पुन: खंडित या दंतुर (दांतीदार) होते हैं. पुष्प जामुनी वर्ण के, फल गोल, व्यास में आध से एक इंच के, श्वेत रेखांकित, हरे, पकने पर पील और कभी-कभी श्वेत भी होते हैं. यह लक्ष्मणा नामक संप्रति अनिश्चित वनौषधि का स्थानापन्न माना है. आयुर्वेदीय चिकित्सा में कटेरी के मूल, फल तथा पंचाग का व्यवहार होता है. प्रसिद्ध औषधिगण ‘दशमूल’ और उसमें भी ‘लंघुपंचमूल’ का यह एक अंग है.
◆ कटेरी /कंटकारी औषधीय गुण :– स्वेदजनक, ज्वरघ्न, कफ-वात-नाशक तथा शोथहर आदि गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा के कासश्वास, प्रतिश्याय तथा ज्वरादि में विभिन्न रूपों में इसका प्रचुर उपयोग किया जाता है. बीजों में वेदनास्थापन का गुण होने से दंतशूल तथा अर्श की शोथयुक्त वेदना में इनका धुआं दिया जाता है.