रांची: आज का पंचांग —-
●कलियुगाब्द……5122
●विक्रम संवत्…..2077
●शक संवत्…….1942
●मास…….बैशाख
●पक्ष……….कृष्ण
●तिथी…..एकादशी
रात्रि 10.19 पर्यंत पश्चात द्वादशी
●रवि…..उत्तरायण
●सूर्योदय..प्रातः 06.04.33 पर
●सूर्यास्त..संध्या 06.48.54 पर
●सूर्य राशि……..मेष
●चन्द्र राशि……कुम्भ
●नक्षत्र….शतभिषा
दुसरे दिन प्रातः 08.15 पर्यंत पश्चात पूर्वाभाद्रपद
●योग………..शुक्ल
संध्या 06.33 पर्यंत पश्चात ब्रह्मा
●करण…………बव
प्रातः 09.09 पर्यंत पश्चात बालव
●ऋतु…………बसंत
●दिन………..शनिवार
★★ आंग्ल मतानुसार :-
18 अप्रैल सन 2020 ईस्वी ।
★★ तिथि विशेष :-
◆◆ वरुथिनी एकादशी :-
◆ व्रत कथा :-
युधिष्ठिर ने पूछा : हे वासुदेव ! वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया उसकी महिमा बताइये.
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! वैशाख (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार चैत्र ) कृष्णपक्ष की एकादशी ‘वरुथिनी’ के नाम से प्रसिद्ध है.
यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है. ‘वरुथिनी’ के व्रत से सदा सुख की प्राप्ति और पाप की हानि होती है. ‘वरुथिनी’ के व्रत से ही मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं. जो फल दस हजार वर्षों तक तपस्या करने के बाद मनुष्य को प्राप्त होता है, वही फल इस ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत रखनेमात्र से प्राप्त हो जाता है.
नृपश्रेष्ठ ! घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है. भूमिदान उससे भी बड़ा है. भूमिदान से भी अधिक महत्त्व तिलदान का है. तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है. विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी इस दान के ही समान बताया है. कन्यादान के तुल्य ही गाय का दान है, यह साक्षात् भगवान का कथन है.
इन सब दानों से भी बड़ा विद्यादान है. मनुष्य ‘’वरुथिनी एकादशी’’ का व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है. जो लोग पाप से मोहित होकर कन्या के धन से जीविका चलाते हैं, वे पुण्य का क्षय होने पर यातनामक नरक में जाते हैं. अत: सर्वथा प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिए उसे अपने काम में नहीं लाना चाहिए. जो अपनी शक्ति के अनुसार अपनी कन्या को आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं. ‘‘वरुथिनी एकादशी’’ करके भी मनुष्य उसीके समान फल प्राप्त करता है.
राजन् ! रात को जागरण करके जो भगवान मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होते हैं. अत: पापभीरु मनुष्यों को पूर्ण प्रयत्न करके इस एकादशी का व्रत करना चाहिए. यमराज से डरनेवाला मनुष्य अवश्य ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत करे. राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है.
★ शुभ अंक………9
★ शुभ रंग……..नीला
★★ अभिजीत मुहूर्त :-
दोप 11.37 से 12.28 तक ।
★★ राहुकाल :-
प्रात: 08.54 से 10.28 तक ।
★★ दिशाशूल :-
पूर्वदिशा – यदि आवश्यक हो तो अदरक या उड़द का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें .
★★ चौघड़िया :-
प्रात: 07.19 से 08.53 तक शुभ
दोप. 12.02 से 01.36 तक चर
दोप. 01.36 से 03.10 तक लाभ
दोप. 03.10 से 04.45 तक अमृत
संध्या 06.19 से 07.45 तक लाभ
रात्रि 09.10 से 10.36 तक शुभ ।
★★ आज का मंत्र :-
|| ॐ अतिरुद्राय नम: ||
★★ सुभाषितानि (राजधर्म) :-
यथा बीजाङ्कुरः सूक्ष्मः प्रयत्नेनाभिरक्षितः ।
फलप्रदो भवेत् काले तद्वत् मन्त्राः सुरक्षिताः ॥
◆ अर्थात :- जैसे प्रयत्न से रक्षित सूक्ष्म बीजांकुर, समय आने पर फलदायी बनता है, वैसे हि सुरक्षित मंत्रीगण भी फलदायी बनता है.
★★ आरोग्यं सलाह :-
◆◆ दांतों को मोतियों की तरह ऐसे चमकाएं :-
◆ सेब का सिरका :- सेब का सिरका आपके दांतों का पीलापन हटाकर, आपको तुरंत सफेद और चमकदार मुस्कान दे सकता है. दरअसल यह गहराई और कोमलता के साथ आपके दांतों की अंदर से सफाई करने में सक्षम है। हालांकि, सिरका का ज्यादा इस्तेमाल आपके दांतों पर इना-मेल को खत्म कर सकता है, इसलिए इसका उपयोग विकली ही करें.