रांचीः आदिवासियों के हित के लिए तैयार किए गए आदिवासी-सरना कोड को प्रस्ताव पर सरकार ने मुहर लगा दी है. यह प्रस्ताव आदिवासी सरना धर्मावलंबियों के लिए अलग सरना कोड का प्रावधान करने हेतु केंद्र सरकार को भेजे जाने से संबंधित है.
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि 2021 में होने वाले जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग करना कोड का प्रावधान किया जाएगा. गृह विभाग द्वारा तैयार किए गए इस प्रस्ताव को कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जा सकता है वहीं इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए 11 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र आहूत किया गया है
क्या है प्रस्ताव में–
• आदिवासियों को यदि सरना कोड मिल जाएगा तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे
• सरना धर्मावलंबी आदिवासियों की गिनती स्पष्ट रूप से जनगणना के माध्यम से हो सकेगी
• आदिवासियों की जनसंख्या का स्पष्ट आकलन हो सकेगा
• आदिवासियों को मिलने वाले संवैधानिक अधिकारों का लाभ प्राप्त हो सकेगा
• केंद्रीय सहायता के लाभ तथा जमीन के पारंपरिक अधिकार भी शामिल है
• आदिवासियों की भाषा संस्कृति इतिहास का संरक्षण व संवर्धन होगा
क्या कहा गया है प्रस्ताव में–
प्रस्ताव में कहा गया है कि 1871 से 1951 तक हुई जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था. 1961- 62 की जनगणना में इसे हटा दिया गया. 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्यों में रहने वाले 5 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र में सरना धर्म लिखा झारखंड में सरना धर्म को मानने वाले लोग वर्षों से धर्म कोड लागू करने के लिए आंदोलन करते आ रहे हैं वर्तमान और पूर्व के कई विधायकों ने भी आवेदन देकर इसे लागू करने का अनुरोध किया है
आदिवासियों की संख्या में आई है कमी–
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि आदिवासियों की जनसंख्या में भारी गिरावट आ रही है इसकी वजह है कि जनगणना वैसे समय में होती है जब आदिवासी दूसरे राज्यों में चले जाते हैं. वहां उन्हें सामान्य वर्ग में रखा जाता है, आदिवासियों की घटती जनसंख्या एक गंभीर सवाल है.
वर्ष 2001 की जनसंख्या में आदिवासियों की जनसंख्या का प्रतिशत फिर कम हुआ है. जनसंख्या में लगातार कमी आखिर क्यों हो रही है. देश में बढ़ती जनसंख्या चुनौती है. वहीं आदिवासियों की जनसंख्या घट रही है.
1931 से 2011 के बीच आदिवासी जनसंख्या के विश्लेषण से यह पता चलता है कि पिछले 8 दशकों में आदिवासी जनसंख्या का प्रतिशत 38.03 से घर 2011 में 26.02% हो गया. इस दौरान 12% की कमी हुई झारखंड में कुल आबादी में वृद्धि दर से अत्यंत कम है.
आदिवासियों की जनसंख्या में इस गिरावट के कारण कई जिलों को पांचवी अनुसूची के जिलों से बाहर करने की बात की जा रही है. इसका असर आदिवासियों पर पड़ेगा, इसलिए भी जनगणना में सरना धर्म कोड का होना जरूरी है.