नीता शेखर,
“कतरा कतरा आंसू उसके दामन को भिगो रहे थे, खामोश थी पर लब कुछ कहना चाह रहे थे”
अभी हम सबको शिफ्ट किए हुए इस कॉलोनी में कुछ ही दिन हुए थे हम दिल्ली से लखनऊ आ गए थे. मैंने देखा एक युवती हर दिन शाम को 6:00 बजे से 8:00 बजे तक टकटकी बांधे हुए अपने दरवाजे पर बैठे रहती है और आंखों से झर झर आंसू निकला करता था जैसे बहुत कुछ कहना चाह रही हो पर कह नहीं पा रही.
यह उसका हर दिन का नियम था. बस खामोश से सूने आकाश को देखती रहती मानो किसी का इंतजार कर रही हो. शुरू में तो मैंने ध्यान नहीं दिया था. चूंकी अब सेटल हो गई थी तो बरबस ही मेरा ध्यान उस पर चला जाता था. देखते ही देखते चार-पांच महीने गुजर गए. अब भी उसका वही रूटीन था. थोड़ी-थोड़ी मुझे भी उत्सुकता हुई आखिर कौन है? किसका इंतजार करती है? इस जगह पर आए हुए कुछ ही दिन हुए थे, किसी से ज्यादा परिचय भी नहीं था. पता करुं तो कैसे? यही सोचती फिर अचानक से दिमाग में आया. कामवाली को जरूर पता होगा. उन्हें तो हर घर की बात पता होती है, आएगी तो मैं ही पूछ लूंगी. अगले दिन जब वो आई तो मैंने पूछा कौन है, इस तरह से वह किसका इंतजार करती है?
उसने जो बताना शुरू किया तो मैं सकते में आ गई, अगर किसी की गृहस्थी बसने के पहले ही उजड़ जाए तो जीने के लिए बचा ही क्या है? वह भी जो बचपन से एक दूसरे को जानते हो. दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे, काफी गहरी दोस्ती थी कॉलेज से पढ़ाई शुरू की. एक ही काम शुरू किया. दोनों परिवार वालों ने मिलकर उन दोनों की सगाई कर दी. अब वह बहुत खुश रहने लगी. दोनों साथ में काम भी करते थे. आना जाना साथ ही हो जाता. एक बार किसी काम के सिलसिले में दोनों दिल्ली गए. लौटते समय आगरा एक्सप्रेस वे पर अचानक सामने से नीलगाय आ गई. उसको बचाने के चक्कर में गाड़ी को डिवाइडर पर चढ़ा दिया. फिर जोर की आवाज आई और ऐसा लगा मानो गाड़ी उड़ कर जा गिरी हो. उसी वक्त अमन का सिर फट गया. तुरंत ही उसकी मौत हो गई थी. जबकि सृष्टि की आंख खुली तो उसने अपने आप को अस्पताल में पाया. बार-बार वह अमन के बारे में पूछ रही थी पर किसी को बताने की हिम्मत ही नहीं हो पा रही थी. जब भी वह पूछती सभी खामोश हो जाते उनके पास जवाब देने के लिए बचा ही क्या था. जब सृष्टि धीरे धीरे ठीक हो कर घर आई
तो उसे पता चला अमन नहीं रहा. अब तो ऐसे खामोश हुई कि फिर वह कभी हंस नहीं पाई. एक तो उसकी शादी नवंबर में होनी तय थी. 30 सितंबर की घटना थी. शादी से मात्र 2 महीने पहले. एक दिन अमन के घर आई कहा आंटी अब मैं यही रहूंगी. मैं आप लोगों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी. लोगों ने काफी समझाया पर वह अपने घर जाने के लिए तैयार ही नहीं थी. अब वह वहीं रहने लगी. उसे बार-बार लगता आज अमन होता तो हम यह करते, वह करते. वह हर दिन तैयार होकर उसका इंतजार करती. हर दिन तैयार होकर घर के दरवाजे पर बैठे रहती, टकटकी लगाए. लगता कभी तो आएगा. इंतजार करती थी उसका.
इस दुनिया में कोई वापस आया है जो आएगा. अब उस के नसीब में इंतजार के सिवा कुछ भी नहीं बचा था पर वह अमन का घर छोड़ना ही नहीं चाहती थी. किसी भी हाल में उसके मां पापा को छोड़ना नहीं चाहती. बस यही कहती- आप चिंता ना करो मैं अमन हूं. अब आप सब का ख्याल मै रखूंगी. वो तो ठीक है पर कल क्या होगा? कहीं ऊंच-नीच हो जाए तो हम क्या करेंगें. किसी भी हाल में घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई. उसे लगता अमन ही मेरी दुनिया था और रहेगा.
इस घटना को बीते हुए लगभग 12 साल गुजर गए पर आज भी वह हर दिन दरवाजे पर बैठकर उसका इंतजार करती है. जबकि उसको भी पता है अमन अब कभी नहीं आएगा पर उसका दिल मानता ही नहीं उसे लगता है नहीं अमन आएगा उसे लेने,जरूर आएगा.