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क्यों है अमेरिका इसके विरोध में ?
S 400TRIMUF एक MLR SAM ( Modern Long Range surface to Air Missile )सिस्टम है जिसे रुस कि एक कम्पनी ALMAZ ANTEY ने बनया व विकसित किया है. NATO मे इसे SA- 21 GRAWLER नाम से जाना जाता है. इसे सबसे पहले रुस ने उपयोग करना प्रारंभ किया था.
यह रुस के S 300 का नया रूप है. रुस ने इसे अपनी राजधानी मास्को की सुरक्षा में तैनात किया है. भारत की रुस के साथ संभवतः 5 बिलियन डॉलर लगभग 4000 करोड़ रूपये की डील हुई है, इसके खरीद की, जो अपने आप एक बहुत बड़ी डील है.
अमेरिका हमेशा से इसके विरोध में रहा है और हाल ही में S 400 के भारत की खरीद पर फिर अपना विरोध जताया है. अमेरिका लगातार इस पर किसी न किसी रूप में अपना विरोधात्मक प्रतिक्रिया देता रहा है, परन्तु भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस डील से पीछे नहीं हटने वाला.
यदि भारत यहां एक उत्कृष्ट कुटनीति का परिचय देते हुए यह मिसाइल भारत ले आता है बिने किसी देश से सम्बन्ध खराब किये हुए तो यह भारत की एक बड़ी जीत होगी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर.
कितना कारगर है, S 400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम?
यदि हम इसे क्षमता की दृष्टी से आंके तो यह दुनिया का एक बेहतरीन मिसाइल डिफेन्स सिस्टम है. आज के समय रुस का यह मिसाइल सिस्टम एक एडवांस्ड राडार, एवं ताकतवर मिसाइल से युक्त एसा हथियार है जो किसी भी प्रकार के टारगेट को पकड़ कर नष्ट करने की क्षमता रखता है.
S 400 TRIMUF सिस्टम हर प्रकार के एरिअल टारगेट जैसे ब्लास्टिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल, फायटर जेट्स, UAVS आदि को 400 किमी की दूरी व 30 किमी की उचाई तक नष्ट कर सकता है.
यदि इसके रडार की क्षमता की बात करें तो ये हवा में मौजूद लगभग 100 टारगेट तक को एक साथ ट्रेक कर सकता है, जिसमें सुपर फायटर जेट्स, F 35 आदि भी शामिल है. यह एक बार में क्रमशः छह टारगेट तक नष्ट करने की भी क्षमता रखता है. भारत की वतमान परिस्थितियों को देखते हुए यदि यह भारत में आता है तो यह एक सशक्त व कारगर रक्षा उपकरण साबित हो सकता है.
यह क्यों है भारत के लिए अभी इतना जरुरी ?
यदि हम आज की वर्तमान स्थिति की बात करे तो भारत के दोनों पडोसी मुल्क चीन तथा पाकिस्तान के साथ सीमा को लेकर सम्बन्ध उतने अच्छे नहीं है. दोनों देश पहले भी भारत पर हमला कर चुके है और आगे भी भारत को इनसे सीमा सुरक्षा की दृष्टी से खतरा है.
इसके लिए भारत को एक अच्छे मिसाइल डिफेन्स सिस्टम की आवश्यकता है. यदि हम पाकिस्तान की वायु ताकत को देखें तो उसके पास लगभग 20 फायटर स्कवार्डन, एडवांस्ड F16 तथा चीन से मिले नवीनतम तकनीकि से युक्त J17 फायटर एयरक्राफ्ट है.
वहीं चीन के पास लगभग 1700 फायटर प्लेन जिसमे से तकरीबन 800 चौथी पीढ़ी के फायटर प्लेन और स्ट्लिथ एयरक्राफ्ट है, जिसके मुकाबले में हमे अभी और मजबूती व सशक्तीकरण की आवश्यकता है. भविष्य में इन खतरों को भांपते हुए पूर्व वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ जी ने कहा था —
क्या / क्यों है अमेरिका का विरोध ?
अमेरिका रुस पर CAATSA ( Countering America’s Adversaries Through sanctions Act ) के तहत प्रतिबन्ध लगा चुका है. जिसके अंतर्गत यदि कोई भी देश रुस से हथियार या कोई भी रक्षा उपकरण खरीदता है तो उस पर भी इस कानून के तहत स्वतः प्रतिबन्ध लग जाएगा.
CAATSA के सेक्शन 231 के अनुसार, “कोई भी देश रुस से नवीन रक्षा उपकरणों की खरीद नहीं कर सकता. यदि कोई देश एसा करता है तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उस पर इस कानून के तहत स्वतः प्रतिबंध लग जाएगा.
हलांकि पहले से खरीदी हुए उपकरणों के स्पेयर पार्ट्स इस प्रतिबन्ध से बहार होंगे . अमेरिका चीन पर पहले ही S 400 की खरीद पर प्रतिबन्ध लगा चुका है. रुस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन के 2019 के भारत दौरे के समय अमेरिका ने भारत को अप्रत्यक्ष रूप से इस ओर इशारा किया था.
अमेरिका के एक समाचार पत्र के अनुसार अमेरिका ने कहा है कि यदि भारत S 400 की खरीद करता है तो उस पर CAATSA के तहत प्रतिबन्ध लग जायेगा और यह पूर्ण रूप से कानून के अंतर्गत होगा जिस पर अमेरिका कुछ नहीं कर सकेगा .
भारत रुस से S 400 की पांच बैटरी यूनिट खरीद रहा है, जो भारत की आतंरिक एवं सीमा की सुरक्षा में तैनात की जायेगी जो सुरक्षात्मक दृष्टि से देश के अत्यंत आवश्यक है. चूंकि चीन रुस से पहले ही इसके छः यूनिट खरीद चुका है इस कारण इसकी आवश्यकता भारत के लिए और अधिक हो जाती है.
भारत इस पर साफ कर चुका है कि वह S 400 की जो डील रुस से कर रहा है, उस पर वह पीछे नहीं हटने वाला. अलबत्ता यहां धयान देने वाली बात यह है कि यदि अमेरिका भारत पर यह प्रतिबन्ध लगा देता है तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत किसी भी देश से कोई भी रक्षा सौदा नहीं कर सकता और इसमें अमेरिका भी होगा. परन्तु भारत के कई रक्षा सौदे अभी अमेरिका की कई कंपनी के साथ भविष्य में होने वाले है जो सभी के सभी खटाई में पड जायेंगे इस प्रतिबन्ध के लगने पर.
इसलिए शायद अमेरिका और भारत कूटनीतिक स्तर पर एसा कोई रास्ता निकाले जिससे उसका असर भारत पर ना पड़े और S 400 भारत की सुरक्षा का हिस्सा भी बन जाय, बिना किसी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध के .