नीता शेखर,
कौन हो तुम? एक फरिश्ता, एक अजनबी ,या मेरे हमदम मेरे दोस्त नहीं जानती कौन हो तुम ? बस इतना जानती हूं मेरी खुशियों में चार चांद लगाने वाले हो तुम. जो खुशियां तुमने दी वह जिंदगी में कभी नहीं मिली. कौन करता है किसी अजनबी के लिए. सोचती हूं गुमसुम आखिर कौन हो तुम?
सुचिता सोचते जा रही थी कैसे अरुण उसकी जिंदगी में आया ? सुचिता रोज की तरह अपने कामों को खत्म करके बालकनी में बैठकर अपनी जिंदगी के बारे में सोच रहे थी. उसे कितना शौक था जिंदगी में कुछ करने का मगर समय और हालातों की वजह से वह कुछ नहीं कर पा रही थी. एक तो कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई. घर परिवार संभालते संभालते कब समय गुजर गया पता ही नहीं चला. उसके पति बहुत कम ही बोलते थे, अपने काम से ज्यादा प्यार था. उसमें ही व्यस्त रहते थे. फिर सुचिता को भी आदत सी हो गई थी चुपचाप रहने की. वह अपने काम और फर्ज में कभी कमी नहीं करती थी, हां घर में जितना शांत रहती बाहर में सबसे उतना ही मानते थे. बच्चे भी अब बाहर चले गए थे इसलिए उसने सोशल सर्विस ज्वाइन कर ली थी.
वहां उसे समाज सेवा करने में बहुत अच्छा लगता था. वहां वो सबकी चहेती बन गई थी. उन्हें लगता था
सुचिता के बिना कोई काम ही नहीं हो सकता. उसका स्वभाव ही ऐसा था किसी भी काम के लिए हमेशा तत्पर रहती. सब होते हुए भी वो एकदम अकेली थी. कभी-कभी उसे लगता जी क्यों रही, क्यों जी रही है ऐसी जिंदगी.
शादी के पहले उसे दिनभर लोग न्यूज़ है कहकर चिढ़ाया करते थे क्योंकि उसके पापा जैसे ही ऑफिस से आते दिनभर की खबरें सुनाया करते थी. शादी के बाद वह चुप चुप रहने लगी. जिंदगी ने उसे सब कुछ दिया था. धन, दौलत, रुपया, पैसे की तो कोई कमी नहीं थी पर क्या इन सब चीजों से इन्सान खुश रह लेता है. नहीं सब कुछ होते हुए भी उसके मन का कोना सुना था. उसे हर समय एक खालीपन का एहसास होता फिर भी जिंदगी तो चलती ही रहती है. एक दिन उसने फोन पर किसी की आवाज सुनी. उस आवाज में न जाने कैसा जादू था. उसने उसे मोहित कर लिया, आवाज को सुनने का मन करता था. 2 मिनट तक बात करने से उसे ऐसा महसूस होता है जो काम करने में नहीं अच्छा लगता, वह अब फटाफट कर दिया करती थी.
यही तो एक शादीशुदा औरत किसी को नहीं बता सकती. उनके आगे समाज आ जाते हैं, पर उसने सोच लिया था, क्या किसी अजनबी से बात करना, जिंदगी जीना, कोई अधिकार नहीं किसी औरत को, बस ये समाज इजाजत नहीं देता. खुशी मिलती है उससे बात करने में, अब मैं खुश रहुंगी क्योंकि अब मैं अपने लिए खुश रहुंगी.
किसी से मिलना ही खुशियां नहीं होती, बस जिससे आप बात करके ऐसा महसूस करें कि रोम-रोम खुश हो गया है उसमें कुछ तो बात होगी. जैसे किसी सूखे पेड़ में पानी डालने से जी उठता है, वैसे ही मैं जी उठी हूं.
नहीं जानती तुम कौन हो बस इतना जानती हुं तुम मेरी खुशियां, तुम मेरी खुशी हो.