साभार: अखिलेश सिंह के ब्लॉग से
रांची : 27 जुलाई को किए एक ट्वीट में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा क्षेत्र बरहेट के थानेदार रहे हरीश पाठक की करतूतों को शर्मनाक और अक्षम्य माना. मुख्यमंत्री ने बरहेट थाने में एक युवती को मारते- पीटते व गाली- गलौज करने वाली वीडियो को सोशल मीडिया में देखने के बाद थानेदार पर कार्रवाई का आदेश भी तब दिया. मुख्यमंत्री के ट्ववीट पर ही रीट्वीट कर डीजीपी एमवी राव ने हरीश पाठक के खिलाफ जांच व फिर जांच में दोषी पाए जाने की जानकारी दी. एफआईआर करने की जानकारी भी डीजीपी ने सोशल साइट पर शेयर की. लेकिन एफआईआर में वो धाराएं प्रवाहित कर दी गईं जो दारोगा जी के गुनाह पर लगायी जानी चाहिए थीं. पीड़िता ने थाने में दिए आवेदन में छेड़छाड़ का जिक्र किया. लेकिन पुलिस ने छेड़छाड़ की धारा एफआईआर में लगायी ही नहीं. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि आखिर वो कौन है जो दारोगा जी के गुनाह की धाराएं प्रवाहित कर रहा. चौकानें वाली बात यह है कि ऐसा एक पहली बार नहीं है, जब इस विवादित अफसर को बचाने की कोशिश हुई है, यह सिलसिला लगातार ही चल रहा.
एफआईआर में नहीं लगी आईपीसी 354
युवती की शिकायत पर बरहेट के निलंबित थानेदार के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 341, 506 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। पीड़िता की शिकायत पर दर्ज एफआईआर में सारी जमानतीय धाराएं लगायी गई है। एफआईआर में पीड़िता ने छेड़छाड़ का जिक्र किया था। लेकिन इससे संबंधित धारा 354 के तहत थानेदार को आरोपित नहीं किया गया। गैर जमानतीय धारा में एफआईआर दर्ज होने पर हरीश पाठक की परेशानी बढ़ सकती थी, ऐसे में दरोगा हरीश पाठक को बचाने के लिए धाराओं का खेल कर दिया गया है।
हरीश पाठक की गिनती राज्य के विवादित जूनियर पुलिस अफसरों में होती है। बकोरिया कांड में तात्कालिन एसपी कन्हैया मयूर पटेल के खिलाफ बयान देकर बकोरिया मुठभेड़ कांड को फर्जी करार देने वाले पुलिसिया लॉबी की पसंद हरीश पाठक बन गए थे। पलामू में विभागीय मामलों में निलंबित किए जाने के बाद हरीश पाठक का तबादला साल 2016 में जामताड़ा जिले में कर दिया गया था। जामाताड़ा में पोस्टिंग के बाद हरीश पाठक की पोस्टिंग नारायणपुर थाने में हुई। नारायणपुर में ही मिन्हाज अंसारी को पुलिस हिरासत में पीट पीट कर मारने के मामले में सीआईडी ने साल 2018 में हरीश पाठक पर चार्जशीट की। चार्जशीट के बाद हाईकोर्ट ने हरीश पाठक की जमानत याचिका भी रद कर दी। इसी बीच झारखंड में पुलिसिया सिस्टम बदला। सिस्टम बदलने के बाद सीआईडी ने मिन्हाज हत्याकांड में पाठक को राहत दिलाने की नियत से नए सिरे से जांच की अनुशंसा करते हुए जामताड़ा सीजेएम कोर्ट में आवेदन दिया। दो दो विभागीय कार्रवाई में पुलिस मुख्यालय के स्तर पर न सिर्फ राहत दिया गया, बल्कि चार्जशीटेड होने के बावजूद हरीश पाठक के इंस्पेक्टर में प्रमोशन की अनुशंसा कर दी गई। नियम के अनुसार किसी मामले में आरोपी या चार्जशीटेड अफसर को प्रमोशन नहीं दिया जा सकता। लेकिन हरीश पाठक के मामले में तथ्यों को छिपाकर इंस्पेक्टर में प्रमोशन की तैयारी कर ली गई थी।
एएसआई के मौत के मामले में भी लापरवाही
सरायकेला में 26 जून को संथाल लिबरेशन आर्मी से जुड़े अपराधियों ने अपह्रत व्यवसायी अरूण साव को छुड़ाने गई पुलिस टीम पर हमला कर दिया था। अपराधियों ने बरहेट थाने के एएसआई चंद्राइ सोरेन को गोली मार दी थी। चंद्राइ के साथ छापेमारी में गए हरीश पाठक के पास तब सरकारी हथियार नहीं होने की बात जांच में सामने आयी है। सवाल उठ रहे कि जब पुलिस को इतने खूंखार अपराधियों से मुकाबला करना था, थानेदार बगैर हथियार रेड में गए थे। यही नहीं इस मामले में थाने में दर्ज एफआईआर में बताया गया है कि अपराधियों ने हरीश पाठक के साथ आठ से दस मिनटों तक धक्का मुक्की की, उस दौरान उन्होंने अपराधियों का लोडेड पिस्टल छिन लिया। लेकिन एएसआई को गोली लगने के बाद भी थानेदार ने कोई फायरिंग नहीं की।