उत्तराखंड: हर साल गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाएं पर्यावरण के लिए चिंता का विषय बन गई हैं. पिछले चार दिनों से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में जंगल धधक रहे हैं.
हर साल बढ़ते तापमान के कारण जंगल में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं. इस साल अब तक 46 बार जंगलों में आग लग चुकी है. जंगल में लगी आग की वजह से जानवर भी अपनी जान बचाने के लिए दूसरे क्षेत्रों की ओर भाग रहे हैं.
राज्य में आग अब तक 51.34 हेक्टेयर क्षेत्र को नुकसान पहुंचा चुकी है. अप्रैल और मई मध्य तक बारिश के चलते जंगल शांत थे, लेकिन अब जंगलों की आग बढ़ने लगी है.
राज्य के जंगलों में तेज गर्मी और धूप बनकर टूटती है. इसकी वजह से जंगलों में आग लग जाती है. आमतौर पर गर्मी के दिनों में सूखे पत्तों और घासफूस में आग लग जाती है, जो देखते ही देखते जंगलों को खाक में मिलाकर रख देती है.
पिछले साल ऐसी ही एक आग लगी थी, जिसमें उत्तराखंड का दो हजार हेक्टेयर से ज्यादा जंगल तबाह हो गया था. तेज धूप के कारण जंगल में घास और लकड़ियां सूख जाती है जो आग को तेजी से फैलने में मदद करती हैं. वहीं, तेज हवा के कारण आग दूर तक फैलती जाती है.
उत्तरखंड के जंगलों में आग लगने की एक अहम वजह चीड़ के पत्ते भी हैं. पहाड़ी भाषा में इन्हें पिरूल कहते हैं. सूखे हुए चीड़ के पत्तों में आग जल्दी लगती है और तेजी से फैलती भी है.
चीड़ के पेड़ में 20 से 25 सेमी लम्बे नुकीले पत्ते होते हैं जो गर्मियों से सूखते ही जमीन पर गिरते हैं. ये इतने ज्वलनीशल होते हैं कि अगर थोड़ा भी कहीं आग पकड़ ली तो फिर बुझना मुश्किल होता है और थोड़ा सी हवा चलने पर आग की रफ्तार बेकाबू हो जाती है.
पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि के मुख्य कारणों में पिरूल भी एक है और हर साल गर्मियों में इससे लाखों हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ जाते हैं और कई जानवर भी मर जाते हैं.