रांची: संक्रांति धार्मिक और सांस्कृतिक तो है ही झारखंड में सियासी संक्राति भी नजर आ रही है. चंद दिनों पहले तक जो बाबूलाल बीजेपी में जाने की बजाए कुतुबमीनार से कूदना बेहतर विकल्प समझते थे. उनकी घर वापसी हो रही है.
झारखंड में बीजेपी से 14 सालों की जुदाई के बाद बाबूलाल को फिर पुराने घर की याद आई है. चुनाव जीतने और पार्टी को 3 सीटें जीताने के बाद खुद बाबूलाल अपनी ही पार्टी को या तो बीजेपी में मिलाएंगे या खुद बीजेपी के हो जाएंगे. तारीख तय हो चुकी है. विदेश से लौटते ही बाबूलाल का सियासी सूरज मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा.
पार्टी के दो और विधायक पोड़ैयाहाट से प्रदीप यादव और मांडर से बंधु तिर्की कांग्रेस में जाएंगे. प्रदीप यादव ने तो ऐलान कर ही दिया है की वो सेक्यूलर ताकतों के साथ जाना पसंद करेंगे. गोड्डा में पत्रकारों से बातचीत में प्रदीप यादव ने कहा कि ” राजनीति में लोग पिता से भी अलग हो जाता है अगर बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी में जाने का मन बना लिया है और प्रदीप यादव भी उनके साथ जा रहे हैं तो ये गलत है.
बाबूलाल मरांडी ने अपने बयान में कहा है कि” कांग्रेस से राजनीति सीखने से अच्छा है बीजेपी में जाना. जाहिर है जो बाबूलाल पिछले 5 सालों से जिस बीजेपी को अपना सबसे बड़ा सियासी दुश्मन बताते रहे उसी पार्टी में वापसी कर बड़ा सियासी दांव खेला है. माना जा रहा है की बाबूलाल को बीजेपी बड़ा पद दे सकती है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का पद अभी खाली है. हालांकि खुद बाबूलाल पद के लालच से इनकार करते हैं
गौरतलब हैें कि बाबूलाल मरांडी ने दलबदल को रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाते हुए अपनी पार्टी की सभी इकाइयां भंग कर रखी हैं. दरअसल विधानसभा चुनाव के ऐलान होते ही बाबूलाल मरांडी उड़ रहे थे. राजनीतिक करियर के आखिरी पड़ाव में विधानसभा चुनाव के वक्त उनकी उड़ान शुरू हुई. यह उड़ान चुनाव खत्म होने के बाद भी जारी रही. विदेश यात्रा कर चुनाव के थकान को दूर कर खरमास के बाद वे वापस लौट रहे हैं. अब भी उड़ान जारी है. यह उड़ान उनके नये राजनीतिक सफर का होगा. खरमास खत्म होते ही बाबूलाल के नये राजनीतिक पारी की शुरूआत होगी.
14 साल बाद आरएसएस के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता बाबूलाल मरांडी का वनवास खत्म हो जायेगा. राज्य के 28 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में 26 हार चुकी भाजपा को राज्य में एक मजबूत आदिवासी नेता की तलाश है. वहीं सभी 81 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद झाविमो के कुल तीन विधायक ही चुने गए. ऐसे में भाजपा और बाबूलाल मरांडी दोनों ही एक-दूसरे में अपना भविष्य देखने में लगे हैं.