उत्तर प्रदेशः कट्टरपंथी संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर पाबंदी लगाने की तैयारी में है योगी आदित्यनाथ की सरकार .
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ राज्यभर में हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसक वारदातों को अंजाम देने में इस संगठन की संलिप्तता का पता चला है.
खुफिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में पीएफआई की भी बड़ी भूमिका थी. सरकारी सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार का होम डिपार्टमेंट राज्य में पीएफआई को प्रतिबंधित करने का मसौदा तैयार कर रहा है.
प्रदेश में प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के कई मामलों में पीएफआई नेताओं के खिलाफ सबूत पाए गए हैं. अब तक पीएफआई के लगभग 20 सदस्यों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
इनमें पीएफआई की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) का प्रदेश अध्यक्ष नूर हसन भी शामिल है.
लखनऊ पुलिस ने पीएफआई के प्रदेश संयोजक वसीम अहमद समेत अन्य पदाधिकारियों को भी शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी करने के मामले में गिरफ्तार किया था.
इस हिंसा में 21 लोगों की हुई थी मौत
गौरतलब है कि हिंसा के दौरान प्रदेश में 21 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 400 लोग घायल हुए थे। विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित पश्चिमी उत्तर प्रदेश रहा था जहां आगजनी, गोलीबारी और सरकारी संपत्ति नष्ट करने के मामले में 318 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
योगी सरकार प्रदर्शन के दौरान तोड़-फोड़ करने वालों, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से हर्जाना वसूलने की प्रक्रिया भी शुरू कर चुकी है.
सीसीटीवी फुटेज से उपद्रवियों की पहचान कर उनकी संपत्ति जब्त करने का नोटिस भेजा जा रहा है. बुलंदशहर के लोगों ने तो खुद से ही जिला कलेक्टर के पास बतौर हर्जाना 6 लाख रुपये जमा करा दिए.