खास बातें:-
🛑रांची पुलिस को जाना था हैदराबाद
🛑पैसे भुगतान की भी नहीं हो पाई है जांच
🛑अफसरों को बचाने में जुटा है एक बड़ा तबका
🛑पीड़ितों ने सीएम हेमंत सोरेन को भेजा पत्र
रांची: आदिवासी युवकों को नौकरी का झांसा देकर सरेंडर कराने के मामले ने अचानक नया मोड़ ले लिया है. तेजी से हो रही जांच को किसी के दबाव में रोक दिया गया. जांच करने वाले अधिकारियों को गो स्लो कहा गया है. रांची पुलिस की एक टीम को कंप्यूटर की जांच के लिए हैदराबाद भेजा जाना था. फिलहाल यह भी टाला गया साथ ही जेल अधीक्षक ने फेंक सरेंडर किए युवकों पर हुए खर्च की रकम की मांग की गई थी. इसमें से करीब 1000000 से अधिक का भुगतान हो गया था. इसकी भी जांच बंद हो गई है.
जैसे ही इसकी जानकारी पीड़ित युवकों को लगी तो उन सभी ने इस संबंध में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है. युवकों ने लिखा है कि कभी इसकी जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा आप कर चुके हैं अब आप राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
क्या लिखा है पीड़ितों ने
पीड़ितों ने लिखा है कि वर्ष 2009 से 2012 तक नौकरी दिलाने के नाम पर मोटी रकम वसूल कर आदिवासी युवकों को पुरानी जेल में रखा गया. कोबरा बटालियन में सिपाही के पद पर बहाली कराने का भरोसा दिया गया था. प्रत्येक युवक से 3 से ₹500000 लिए गए थे. उन्हें वर्दी दी गई थी और तीन बार पीटी भी कराई जाती थी. 3 साल तक यह सिलसिला चला. इसमें दिग्दर्शन के संचालक दिनेश प्रजापति की भी भूमिका थी. इस पूरे मामले की जांच तेजी से होनी चाहिए.
बनी थी एसआईटी
पीड़ित युवकों ने ठगे जाने के बाद लोअर बाजार थाना में मामला दर्ज कराया था. इस मामले की जांच धीमी गति से चल रही है. वर्ष 2014 से चल रही इस जांच में पुलिस किसी नतीजे तक नहीं पहुंची है. अफसरों को बचा लिया गया है. दलालों को जेल भेज दिया गया. कुछ दिन पहले इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया गया.
रांची के डीआईजी की अगुवाई में एसआईटी बनी थी. डीआईजी प्रोन्नत हो गए हैं. जांच धीमी पड़ गई है. तत्कालीन जेल अधीक्षक दिलीप कुमार प्रधान ने रांची के एसएसपी को पत्र लिखकर कोबरा बटालियन के जवान और फेक सरेंडर करने वाले युवकों पर हुए खर्च के भुगतान की मांग की थी. अलग-अलग मदों में हुए खर्च के एवज में कुल 4000000 रुपए की मांग की गई थी. इस मामले की भी जांच की जानी है.