रांची: रांची के सिवरेज-ड्रेनेज निर्माण मामले अब एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गया है। राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय भी इसमें कूद गए हैं। उन्होंने शनिवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि रांची के निर्माणाधीन सिवरेज-ड्रेनेज सिस्टम की बदहाली के लिए नगर विकास मंत्री सीपी सिंह को जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नहीं है। नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने नगर विकास मंत्री रहते हुये इस संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की और अयोग्य साबित हो चुके मेनहर्ट को 17 करोड़ रूपया का बकाया भुगतान कर दिया। इसके लिए कैबिनेट से संकल्प पारित भी कराया गया। जबकि इसके पहले निगरानी (तकनीकी कोषांग) की जांच में यह साबित हो चुका था कि मेनहर्ट की नियुक्ति अवैध थी।
पूर्व सीएस राजबाला वर्मा ने भी नहीं की कार्रवाई
खाद्य आपूर्ति मंत्री ने कहा कि छह अगस्त 2010 को निगरानी (तकनीकी कोषांग) के मुख्य अभियंता ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा को जांच रिपोर्ट सौंपी थी। कहा था कि इस निविदा में प्रकाशन से निष्पादन की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण रही है। तकनीकी कारणों से मेनहर्ट अयोग्य है। इसके बावजूद राजबाला वर्मा ने जांच प्रतिवेदन पर अग्रेतर कार्रवाई करने के बदले में 21 फरवरी 2011 को फाइल नगर विकास विभाग में भेज दी। 13 जुलाई 2011 को नगर विकास विभाग ने कैबिनेट से संकल्प पारित कराकर मेनहर्ट को 17 करोड़ रूपये का बकाया भुगतान कर दिया। इस बारे में नगर विकास विभाग ने हाईकोर्ट के 25 अप्रैल 2011 के निर्णय के विरूद्ध अपील दायर नहीं करने का निर्णय लिया। नगर विकास मंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन ने निगरानी जांच में अयोग्य साबित हो चुके मेनहर्ट के खिलाफ अपील दायर करने से भी मना कर दिया।
सीपी सिंह ने मेनहर्ट को पर्यवेक्षण के काम से हटाया
वर्तमान नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने मेनहर्ट को पयर्वेक्षण के काम से हटा दिया। ऐसी स्थिति में नेता प्रतिपक्ष द्वारा सिवरेज-ड्रेनेज की बदहाली की जिम्मेदारी सीपी सिंह पर थोपा जना उचित नहीं है। वस्तुस्थिति तो यह है कि अनेक जिम्मेदार उच्चपदस्थ पदधारी मेनहर्ट के हमाम में नंगा पाये गए हैं। यह जांच का विषय है कि मेनहर्ट ने जो डीपीआर बनाया था वह डीपीआर रांची के सिवरेज-ड्रेनेज प्रणाली के क्रियान्वयन में कितना कारगार सिद्ध हुआ और निर्माण कार्य के दौरान इसमें कितना परिवर्तन करना पड़ा। खास यह भी है रि एक ओर रांची के सिवरेज-ड्रेनेज का काम मेनहर्ट के पयर्वेक्षण में चल रहा था तो दूसरी ओर 2015 में रांची में पथ निर्माण विभाग भी अलग से ड्रेनेज बना रहा था। ड्रेनेज निर्माण पर पथ निर्माण विभाग द्वारा 140 करोड़ रूपया खर्च होने के बाद भी यह ड्रेनेज सिस्टम कामयाब नहीं हुआ।
सरयू राय ने खड़े किये सवाल
सरयू राय ने सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि पथ निर्माण विभाग द्वारा बनाया गया ड्रेनेज सिस्टम मेनहर्ट के डीपीआर के अनुरूप था या नहीं? यह महज संयोग नहीं हो सकता कि राजबाला वर्मा ने निगरानी (तकनीकी कोषांग) की जांच में दोषी पाये गये मेनहर्ट पर कार्रवाई करने की संचिका निगरानी आयुक्त के रूप में दबा दी। वहीं पथ निर्माण सचिव के नाते रांची में स्वतंत्र ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण भी करा दिया। 16 अक्टूबर 2009 से 28 अगस्त 2011 के बीच निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक एमवी राव ने हाईकोर्ट के निर्देशानुसार आधा दर्जन से अधिक बार निगरानी आयुक्त से अग्रेतर कार्रवाई के लिए निर्देश मांगा, पर निर्देश उन्हें नहीं मिला। इस अवधि में शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे और हेमंत सोरेन नगर विकास मंत्री। हेमंत सोरेन को अपने गिरेबान में झांकना चाहिये और वस्तुस्थिति पर समुचित विचार करना चाहिये।