तमिलनाडु: महिला काव्य मंच(रजि) की दक्षिण प्रांतीय इकाइयों जैसे तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु का दक्षिण भारतीय डिजिटल काव्य सम्मेलन, तमिलनाडु इकाई की उपाध्यक्ष रेखा राय के संचालन में शाम 3:00 से 5:00 तक अत्यंत सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ. इस काव्य सम्मेलन में 20 कवित्रियों ने अपनी रचनाओं द्वारा इंद्रधनुषि छटाओं से समा बांध दिया.
महिला काव्य मंच,तेलंगाना इकाई की अध्यक्ष डॉ अर्चना पांडे ने मुख्य अतिथि के रूप में दीप जलाकर मां सरस्वती को माल्यार्पण किया. महिला काव्य मंच दक्षिणी प्रांत की राष्ट्रीय सचिव *डॉ मंजू रुस्तगी ने सरस्वती वंदना द्वारा कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया. कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही डॉ मंजू रुस्तगी ने मुख्य अतिथि का स्वागत सत्कार किया और लगभग 2 घंटे चली इस काव्य गोष्ठी के अंत में सभी कवित्रियों का आभार प्रकट करते हुए गोष्ठी का समापन कुछ इस प्रकार किया :
‘महिला काव्य मंच के दक्षिण प्रांतीय इकाइयों के मासिक महिला काव्य सम्मेलन में विविध रंगों का समावेश कविताओं के माध्यम से करते हुए, ऑनलाइन इंद्रधनुष निर्मित करने के लिए आप सभी को हार्दिक बधाई.
कवि सम्मेलन में सम्मिलित कवित्रियों की रचनाओं की झलकियां इस प्रकार हैं :
डॉ निर्मला एस मौर्या ने ‘बार-बार अंतस में मेरे भूखी खोह उग आती है. बार-बार खंडित होता है मेरा मन’… सुना कर अंतर्मन की बहुत ही सुंदर व्याख्या की.. ममता सिंह अमृत ने ‘यह कैसी कशमकश जिंदगी के साथ कि.. कुछ पकड़ने की चाहत में कुछ छूट जाता है’.. जिंदगी का बहुत ही सुंदर विश्लेषण किया…
न डॉ. डॉली ने ‘भीड़ में भी आदमी अकेला है.. प्रश्न बड़ा अनोखा है…सुनाकर इंसान के अकेलेपन का एहसास कराया.. रेखा सुमन ने ‘भूख कैसे मिटती है..कैसे बुझती है प्यास… मां से पूछा पुत्र ने आकर उसके पास.. सुनाकर ममता का अनोखा रूप दर्शाया..
शोभा चोरड़िया ने ‘सोना तप कर कुंदन बनता है पर यह सच है आधा.. कोई नहीं चमक पाएगा माँ-बाबा से ज्यादा. सुना कर हमारी जिंदगी में माता-पिता के महत्व को दर्शाया़. डॉ.श्रीलता सुरेश ने ‘और लोग अब नहीं मिलते शाम देर तक जो गप्पे मारते’ *सरला विजय सिंह ने ‘दिल की गहराइयों से निकलती है कविता. निहारिकाओं के देश से गुजरती है कविता’ सुना कर कविता की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला. माया बदेेका ने अपनी कविता ,’जीवन तो ताना-बाना है.. कोई गया किसी को जाना है’ सुना कर जिंदगी के महत्व को उजागर किया.
डॉ विद्या शर्मा ने
‘कितना भी वैभव मिल जाए, बिन तेरे मां कुछ ना भाए’..
डॉ. पुष्पा सिंह ने ‘कुछ पल मैं चुप रही, कुछ पल वह चुप रहे’ सुनाकर जीवन के मधुर लम्हों की याद ताजा की..
रेखा चौहान ने ‘हंसता खेलता बचपन जाने कहां खो गया है’ द्वारा बचपन की याद दिला दी..
डॉ. रविता भाटिया ने ‘भ्रमित हो गई दुनिया सारी, बड़ा हो गया अब विज्ञान’ सुना कर आज के आधुनिकिकरण पर प्रकाश डाला.. स्वप्ना सलोनी ने ‘थोड़ा सा बचपन फिर से जी लें’ सुना कर बचपन की यादें ताजा कर दीं.. *डॉ सरोज सिंह ने ‘हंसी यादों को क्यों तन्हा छोड़ जाते हैं ये रिश्ते’ सुनाकर रिश्तो की अहमियत को दर्शाया.. डॉ. राजलक्ष्मी ने ‘आज बार-बार मुझे बचपन की याद आती है़..’ फिर से वही बचपन याद दिला दिया.. *अनीता ने ‘रंगों की डोली बन हमजोली, द्वारे-द्वारे दस्तक देती’ सुना कर रंगों की छटा बिखेर दी.. *डॉ अर्चना पांडे ने एक सुंदर सी गजल, ‘हो रही है शाम घर को निकल साथिया, तूने वादा किया था, ना छल साथिया’.. सुना कर बहुत ही भाव विभोर कर दिया..
डॉ मंजू रुस्तगी ने
‘कैसा यह अजब मंजर दिखाई देता है, मौत की जद में हर शहर दिखाई देता है’ सुनाकर आज के हालातों को बयान किया..
अंत में संचालन कर रही रेखा राय ने ‘गुलाबों को तुम अपने पास ही रखो,अब हमें कांटों पर चलना आ गया है’ द्वारा अपनी मधुर आवाज़ का जादू बिखेरते हुए नारी सशक्तिकरण का परचम लहराया..
डॉ मंजू की दो पंक्तियां :
चला था कतरने पंख जो कुदरत के.. क़ैद वो अपने ही घर में दिखाई देता है…