रांची: कोरोना संक्रमण की वैश्विक महामारी से पूरा विश्व त्राहि-त्राहि कर रहा है. संक्रमितों और मरने वालों की संख्या डरा रही है. इससे बचने और इसके रोक-थाम के लिए पूरे विश्व में लॉकडाउन ही एक मात्र उपाय है. क्योंकि अभी तक इसकी किसी कारगर दवा का इजाद नहीं हुआ है, दवा अगर मिल भी जाये, तो इसे बाजार में आने में साल भर से अधिक का समय लग जायेगा.
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार पूरी तत्परता से लगी हैं और स्थानीय प्रशासन भी यथासम्भव लोगों की मदद कर रहा है. लोगों तक खाद्य सामग्री पहुंचाना, जहां-तहां फंसे लोगों को घर तक पहुंचाना और भी कई तरह के राहत-कार्य किये जा रहे हैं.
कई स्वयंसेवी संगठन भी इस कार्य में सरकार की सहायता कर रहे हैं. ऐसे सभी कार्य प्रशंसनीय हैं. इन सब के बाद एक बड़ा किन्तु है, वह है- कोरोना-संक्रमण से बचते हुए अन्य गम्भीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को नियमित चिकित्सकीय सुविधा का उपलब्ध न होना यह एक बड़ी समस्या है.
अब दूसरों की बात न करके अपनी बात करूं :
मैं एक रंगकर्मी हूं. मेरी उम्र 72 वर्ष है. पिछले दो वर्षों से मैं गुर्दे की बीमारी से गम्भीर रूप से पीड़ित हूं और शहर के मशहूर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ एके वैद्य से इलाज करा रहा हूं. एक बार हृदयाघात भी हो चुका है.
लगभग चार महीने पहले बेहतर इलाज के लिए उन्होंने मुझे कहीं बाहर दिखाने की सलाह दी. उनकी सलाह पर मैं बीएमसी वेल्लोर में नम्बर लगाया.
9 अप्रैल 2020 को डॉक्टर को दिखाना था, लेकिन इस बीच पूरे देश में ‘लॉकडाउन’ हो जाने के कारण मैं वहां जा ही नहीं सका. इधर, अपने शहर के डॉक्टरों से परामर्श लेने की स्थिति भी नहीं है. इन चालीस-पचास दिनों में मेरे रोग की स्थिति क्या है, इसका कोई अंदाजा ही नहीं है. मुझे लग रहा है, मेरा रोग उग्र होता जा रहा है. कोरोना के संक्रमण से तो शायद बच भी जाऊं, गुर्दे का रोग कहीं जानलेवा साबित न हो.