बसंतराय: वैश्विक महामारी कोरोना के तंगी से जहां देश के डगमगाए आर्थिक व्यवस्था को शराब से संतुलित करने का प्रयास कर न जाने कितनों किलोमीटर की लाइन लगाकर शराब की खरीद-बिक्री कर सरकारी कोष को भरा गया तो वहीं वैसे ही पंक्तिबद्ध होकर अपने बारी का इंतजार करते हुए एक तस्वीर गोड्डा जिले के बसंतराय प्रखंड क्षेत्र से निकल कर आई है, लेकिन यहां की लाइन लगी तस्वीर शराब के एक पैग के लिए नहीं है बल्कि जीवनरक्षिणी पानी की एक-एक बूंद के महत्व को बताती हुई एक जीती-जागती तस्वीर है.
प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर गेरुवा नदी के सौंदर्य रूपी बालू का अवैध खनन करना और बैशाख-जेठ की तपती गर्मी लोगों को पानी के मोल को समझा रही है. एक ओर जहां प्रकृति के सौंदर्य को छेड़ कर मनुष्य को प्रकृति ने छला है, वहीं दूसरी तरफ हर चुनाव के चुनावी दावे के बाद सत्ता पर पदासीन नेताओं ने अपने द्वारा किये गए वादों से मुंह मोड़कर जनता के साथ छलावा कर रहे हैं. पानी के मोल को समझाती ये तस्वीर बसंतराय प्रखंड के महेशपुर गॉंव की है, जहां वर्षों से पानी के लिए भटकना पड़ता है लेकिन मौजूदा हालात इस क्षेत्र के क्षेत्रवासी पानी के एक-एक बूंद के लिए खून की आंसू रो रहे हैं, जहां एक वक्त में पोलियो की दो बूंद की खुराक को लोग जिंदगी का दो बूंद बताते आये हैं तो वहीं इस वक्त लोगों को पोलियो की वो बूंदे तो बड़ी आसानी से मिल जाती है लेकिन समय के साथ पानी की बूंदे सभी को रुला देती है. हालांकि महेशपुर सहित उस जगह तकरीबन आधा दर्जन गॉंव के लिए करोड़ों रुपये की लागत से महेशपुर में एक जलमीनार का निर्माण तो हो रहा है लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ कुछ ही गांवों को पानी की समुचित सुविधा मुहैया होने से पूरे बसंतराय की प्यास बुझ जाएगी…?