- क्या जिला सूचना अधिकारी के यँहा बिना अथार्टी लेटर जमा किये हुए लोगों को भी जिले के आलाधिकारी मानते हैं पत्रकार?
- फतेहपुर जनपद के थाना सुल्तानपुर घोष क्षेत्र में तथाकथित पत्रकारों की आई बाढ़
स्टेट चीफ शशि भूषण दूबे कंचनीय,
लखनऊ (यूपी ): फतेहपुर जिले मे कोरोना वायरस की तरह फतेहपुर जनपद में भी तथा कथित पत्रकारोँ की होड़ लगी हुई है.
जो लोग कल तक गलियों में घूम कर काम की तलाश किया करते थे और ईंट भट्ठों में मजदूरी व शेटरिंग व गैरिज में मकैनिक का काम करते थे, आज वह अपने को पत्रकारिता जगत का गुरू व खिलाड़ी बताते हैं, और सरकारी महकमे से लेकर जनता को अपने गिरफ्त में लेकर रौब झाड़ते हुए नजर आ रहे हैं.
देश का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों की मर्यादा को धूमिल करते हैं. कुछ ऐसे तथा कथित पत्रकार जो यूट्यूब व्हाट्सएप न्यूज़ चलाते हैं व कुछ पैसों के लिए लोगों का आईकार्ड बनाकर प्रेस सदस्य बनाकर पत्रकार होने की घोषणा कर दे रहे हैं जिससे समाज में बढ़ते हुए पत्रकार नजर आ रहे हैं जिससे कि कंही न कंही प्रशासन को भी दिक्कतो का सामना करना पड़ जाता है.
बताते चले कि मामला थाना सुल्तानपुर घोष क्षेत्र के प्रेमनगर से अफ़ोई , कसार , बढैय्यापुर सहित कई गांवों के लोग अपनी मोटरसाइकिलों पर एक लाल कलर का रेडियम स्टिकर लगाकर तथाकथित पत्रकार बताते हैं जबकि गाँवो में शराब पिकर अपनी और पत्रकारिता को भूल जाते हैं. लेकिन अपने को पत्रकार बताना नही भूलते हैं और एक दो पुलिस वालों से जान पहचान हो जाने के बाद व उनको देकर पहले ही नमस्कारी करके गांवों में उनके ही नाम की धौंस देते हैं.
ऐसे में जो अच्छे मर्यादित पत्रकार बन्धु हैं उनकी भी छवि समाज में खराब होने के साथ साथ पूरे पत्रकारिता जगत को बदनाम करते हैं, जिससे कि देश का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला और सच्चाई का आईना कहे जाने वाले शब्दों को ही शर्मशार करते रहते हैं.
प्रशासन व जनता किन लोगों को सही पत्रकार माने. क्या जिनका सम्बन्धित जिला सूचना अधिकारी के कार्यालय पर ज्वाइनिंग लेटर संस्थान/संस्था का लिखा पढ़ी में पत्र जमा है वही सही जिले के पत्रकार हैं, या फिर जो लोग बिना अथर्टी लेटर के गले में आईकार्ड व एक बैग में माइक आईडी व एक महँगा फोन लेकर सरकारी दफ्तरों व कार्यलयों में चक्कर काटते हैं उन्हें,यह सोचने का विषय है.
राशन वितरण का समय हो या फिर 26 जनवरी 15 अगस्त में कुछ तो प्राइवेट/ निजी स्कूलों और अस्पतालों में जाने वाले काफी पत्रकार मिलते हैं लेकिन जब कभी जिला प्रशासन की PC होती है तो वह निजी संस्थानों पर उगाही वाले पत्रकार नही दिखाई देते हैं और कोई -कोई तो अधिकारियों / कर्मचारियों के आंखों में धूल झोंकते हैं, इतना ही नहीं कुछ सरकारी अफसर भी उन्हीं के आड़ में अपनी जेब गर्म करने का मौका भी नहीं छोड़ते हैं.
यह एक बड़ा जाँच का विषय है. जिससे कि पत्रकारिता और पत्रकार को समाज में बार- बार न शर्मिंदा होना पड़े.
अगर तथाकथित पत्रकारों को ना रोका गया तो समाज में इसका काफी बुरा असर पड़ेगा और भ्रष्टाचार काफी बढ़ेगा और ऐसे तथाकथित अपराधी पत्रकारों का मनोबल बढ़ता जाएगा.