दिल्ली: हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत मनाया जाता है. इस साल 22 मई को वट सावित्री व्रत है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग के दीर्घायु होने और उनकी कुशलता के लिए पूजा-उपासना करती हैं. ऐसा मान्यता है कि वट सावित्री व्रत कथा के श्रवण मात्र से महिलाओं के पति पर आने वाली बुरी बला टल जाती है. इस पर्व को देश के सभी हिस्सों में मनाया जाता है. हालांकि, कई हिस्सों में इसे ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. आइए, अब वट सावित्री पूजा की व्रत-कथा जानते हैं-
वट सावित्री पूजा की व्रत-कथा
पौरणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में भद्र देश के राजा अश्वपति बड़े ही प्रतापी और धर्मात्मा थे. उनके इस व्यवहार से प्रजा में सदैव खुशहाली रहती थी, लेकिन अश्वपति स्वयं प्रसन्न नहीं रहते हैं, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थीं. राजा अश्वपति संतान प्राप्ति हेतु नित्य यज्ञ और हवन किया करते थे, जिसमें गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां दी जाती थीं.
उनके इस पुण्य प्राप्त से एक दिन माता गायत्री प्रकट होकर बोली-हे राजन! मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हुई हूं. इसलिए तुम्हें मनचाहा वरदान दे रही हूं. तुम्हारे घर जल्द ही एक कन्या जन्म लेगी. यह कहकर माता गायत्री अंतर्ध्यान हो गईं. कालांतर में राजा अश्वपति के घर बेहद रूपवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया. जब सावित्री बड़ी हुई तो उनके लिए योग्य वर नहीं मिला. इसके बाद राजा अश्वपति ने अपनी कन्या से कहा-हे देवी! आप स्वयं मनचाहा वर ढ़ूंढकर विवाह कर सकती है.
तब सावित्री को एक दिन वन में राजा द्युमत्सेन मिले. सावित्री ने मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया. यह देख नारद जी राजा अश्वपति के पास आकर बोले-हे राजन! आपकी कन्या ने जो वर चुना है, उसकी अकारण जल्द ही मृत्यु हो जाएगी. आप इस विवाह को यथाशीघ्र रोक दें.
राजा अश्वपति के कहने के बावजूद सावित्री नहीं मानी और राजा द्युमत्सेन से शादी कर ली. इसके अगले साल ही नारद जी के कहे अनुसार-राजा द्युमत्सेन की मृत्यु हो गई. उस समय सावित्री अपने पति को गोदकर में लेकर बैठी थी. तभी यमराज आकर राजा द्युमत्सेन की आत्मा को लेकर जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल पड़ी.
यमराज के बहुत मनाने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें वरदान मांगने का प्रलोभन दिया. सावित्री ने अपने पहले वरदान में सास-ससुर की दिव्य ज्योति मांगी ( ऐसा कहा जाता है कि सावित्री के सास ससुर अंधे थे) दूसरे वरदान में छिना राज-पाट मांगा और दूसरे तीसरे वरदान में सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा, जिसे यमराज ने तथास्तु कह स्वीकार कर लिया.
इसके बाद भी जब सावित्री यमराज के पीछे चलती रही तो यमराज ने कहा-हे देवी ! अब आपको क्या चाहिए ? तब सावित्री ने कहा-हे यमदेव आपने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया, लेकिन बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं? यह सुन यमराज स्तब्ध रह गए. इसके बाद उन्होंने राजा द्युमत्सेन को अपने प्राण पाश से मुक्त कर दिया. कालांतर से ही सावत्री की पति सेवा और भक्ति की कथा सुनाई जाती रही है.