रांचीः झारखंड में बिजली आपूर्ति का हाल यह है कि पत्ता भी खड़के तो बत्ती गुल हो जाती है. आउट ऑफ कंट्रोल की स्थिति बनी हुई है. इस तपती गर्मी में हर जिले में तीन से चार घंटे बिजली आपूर्ति बाधित रह रही है. राजधानी में निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए अंडरग्राउंड केबलिंग प्रोजेक्ट की शुरूआत लगभग चार साल पहले की गई थी, लेकिन इससे भी अब तक बिजली आपूर्ति शुरू नहीं हो पाई है. निर्बाध बिजली सप्लाई देने के लिए अंडरग्राउंड केबलिंग के लिए 395 करोड़ का प्रोजेक्ट पॉलिकैब एजेंसी को सौंपा गया था.
नहीं बन पाया पावर हब
राज्य गठन के बाद कई सरकारें आई और गईं. सभी ने 24 घंटे बिजली देने का वादा किया. पर वादे पूरे नहीं हुए. आज भी झारखंड बिजली के लिए दूसरे राज्यों पर ही निर्भर है. पूर्व की सरकारों ने कई मौके पर झारखंड को पावर हब बनाने की घोषणा की. लेकिन हकीकत अब भी कोसों दूर है. राज्य में तीन अल्ट्रामेगावाट पावर प्लांट के निर्माण में अब तक पेंच फंसा हुआ है. दो साल से एक ईंच भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ी है. रिलायंस के पीछे हटने के बाद तिलैया अल्ट्रा मेगा पावर प्वांट की स्थिति वहीं की वहीं है. देवघर अल्ट्रा मेगावाट पावर प्लांट के लिये जमीन अधिग्रहण ही नहीं हुआ. फिलहाल पतरातू प्लांट का काम तो शुरू हो गया है, लेकिन इसमें भी देरी हो गई है.
टीवीएनएल के विस्तारीकरण का भी काम अटका
टीवीएनल के विस्तारीकरण को कैबिनेट से स्वीकृति लगभग दो साल पहले मिली. काम एक ईंच भी आगे नहीं बढ़ा. तेनुघाट पावर प्लांट के विस्तारीकरण को लगभग दो साल पहले कैबिनेट से स्वीकृति मिली. अब तक काम आगे नहीं बढ़ा. विस्तारीकरण के तहत 660-660 मेगावाट की दो यूनिटें लगाई जानी थी.प्लांट के लिये राजबार कोल ब्लॉक आबंटित भी किया गया. इसका माइनिंग प्लान भी कोल मंत्रालय को भेजा गया. डेढ़ साल से स्थिति जस की तस है.
झारखंड में 2500 मेगावाट बिजली की कमी
झारखंड में लगभग 2500 मेगावाट बिजली की कमी है. खुद ऊर्जा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 2020 में 5696 मेगावाट बिजली की जरूरत है. जबकि राज्य के पांचों लाइसेंसी लगभग 3255 मेगावाट ही बिजली की आपूर्ति करते है. डीवीसी 946, जुस्को 43, टाटा स्टील 435, सेल बोकारो 21 और बिजली वितरण निगम 1200 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करते हैं. इसके अलावा अन्य स्त्रोतों से भी बिजली ली जाती है.