नीता शेखर,
“ना कुछ कहो ऐसा कि कोई रूठ जाए, किसी अपने का साथ छूट जाए” ऐसा ना हो कि मनाने के पहले ही बहुत देर हो जाए” उसके पहले ही समेट लो!
आज रूपा दी के पास सब कुछ था. धन दौलत पैसा इतना कुछ की कई पीढ़ियां बैठ कर आराम से रह ले. मगर नहीं था तो उनके पास परिवार. परिवार के नाम पर केवल पति बेटा, बेटी. कभी उनके घर काफी चहल-पहल रहा करती थी. भैया के चारों भाई बहन मां पिताजी साथ में रहते थे. घर में घुसते ही खुशनुमा माहौल महसूस होता था. हम सब सोचते कितना अच्छा है इनका रिश्ता. सभी एक दूसरे के लिए सब जान छिड़कते रहते हैं. इतनी एकता मैंने कहीं नहीं देखी थी.
पर कहते हैं ना वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता. कब कौन सी ऐसी बात मुंह से निकल जाएगी. एक पल में परिवार बिखर जाता है. अचानक खबर आई मामा जी को हार्ट अटैक आ गया. उनको हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है. रिश्ते में वह हमारे मामा लगते थे. जैसे ही खबर मिली हम सभी हॉस्पिटल की ओर भागे. वहां पहुंचने पर पता चला मामाजी काफी सीरियस है दिल्ली जाने की बात कही है.
मामा जी के दोनों दमाद आईएस थे इसलिए हर चीज का इंतजाम फटाफट हो गया. मामा जी को दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कर इलाज शुरू करवा दिया गया. पता नहीं मामाजी को कौन सी ऐसी चोट पहुंची थी. दिनों दिन उनका स्वास्थ्य गिरता ही जा रहा था. धीरे-धीरे मामा जी कोमा में चले गए. फिर वही हुआ जिसका डर था. खबर आई मामा जी नहीं रहे. देखते-देखते मामा जी का परिवार बिखर गया. जो भाई-बहन इतने प्रेम से रहते थे. आज रूपा दी और भैया से सब का नाता टूट चुका था. पता चला मामा जी से रूपा दी की कुछ बहस हो गई थी संपत्ति को लेकर. उन्होंने कुछ ऐसी बातें कह दी जो मामा जी बर्दाश्त नहीं कर पाए. मामी को लगता था रूपा दी की वजह से ही मामा जी का देहांत हो गया.
उन्होंने रूपा दी से ना बोलने की कसम खा ली थी. थोड़ी दिन में उन लोगों ने रूपा दी और भैया को अलग कर दिया. बाकी सब भाई बहन एक साथ ही रहते थे. आज स्थिति ऐसी हो गई थी कि भाई भाई एक दूसरे से अंजान बने रहते थे. हम सब की भी अक्सर किसी न किसी फैमिली गैदरिंग में मुलाकात हो ही जाती थी. हालात यह हो गए कि रूपा दी की बेटी की शादी में कोई नहीं आया. लोगों ने आना-जाना बिल्कुल बंद कर दिया था. सबको लगता था रूपा जी की वजह से मामाजी चले गए. पर जाने वाले को कौन रोक सकता है. यह तो एक बहाना होता है. धीरे धीरे सब रिश्तेदारों ने आना छोड़ दिया. सब को यही लगता मामी को अच्छा लगे या ना लगे, रूपा दी अलग-थलग पड़ गई थी. इसी बीच बड़े वाले जीजा जी का देहांत हो गया. हम सब भी वहां गए हुए थे.
रूपा दी से बातचीत करने का मौका मिला तो मैंने पूछा क्या हुआ आंखों में आंसू भर आए. उन्होंने कहा रात में फ्री होकर बात करते हैं. फिर मैं भी काम में व्यस्त हो गई. जब रात हुई तो मैंने रूपा दी को खोजना शुरू किया तभी किसी ने आकर कहा कि दी आपको छत पर बुला रही है.
मैं भी छत पर पहुंच गई. भैया को नाम के लिए प्रोफेसर बनवा दिया था. बाकी सारे काम भैया ही संभालते थे. भैया के दादाजी ने भैया को अलग से कुछ संपत्ति थी उसी के बंटवारे को लेकर बहस हो गई थी. मामा चाहते थे उसमें सभी को हिस्सा मिले पर रूपा दी ने कह दिया वह तो इनके नाम से है, बस इसी बात पर बहस छिड़ गई .बोलते बोलते रूपा दी के मुंह से निकल गया आप ने हम लोगों के लिए किया ही क्या है. जिंदगी भर भैया को गुलाम बनाकर रखा. सारे काम भैया से करवाते रहे. बाकी भाइयों को अच्छा पढ़ाया लिखाया. आज सभी बाहर सेटल है पर हम क्या हैं हम आपके गुलाम ही हैं.
इसी बात पर मामा जी को बहुत ठेस लगी ,दरअसल भैया ने बिना पूछे अपने नाम की जमीन बेच दी थी. उसी बात का पता चलने पर मामा जी नाराज हो गए थे. इसलिए सबको लगता है कि रूपा दी की वजह से मामाजी चल बसे हैं. मामी ने सारी संपत्ति का बंटवारा कर दिया, मामी भी अपने दूसरे बेटे के घर चली गई, फिर कभी नहीं आई.
इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं बोलने से पहले सोच कर ही बोलना चाहिए. कब कौन सी बात किस को बुरी या अच्छी लगे कोई नहीं जानता. इस बोली की वजह से सब कुछ बर्बाद हो जाता है.
कबीर दास जी, कहते हैं “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय”
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।” अर्थात
हमें ऐसी बोली बोलनी चाहिए जिसे दूसरे को शीतलता का अनुभव हो और हमारा मन भी प्रसन्न हो उठे.