मॉनसून सत्र 22 से 26 जुलाई
झारखंड में चतुर्थ विधानसभा में 22से 26 जुलाई तक आयोजित इस मानसून सत्र से ही विधानसभा के तमाम सत्रो का अवसान हो जाएगा यानि अगर कोई विशेष परिस्थिति ना हो तो विधानसभा चुनाव की घोषणा औऱ वर्तमान प्रथम कार्यकाल में रघुवर दास के मुख्यमंत्री रहते यह अन्तिम सत्र है यहाँ एक औऱ खास बात है इस परिसर का भी आखिरी सत्र साबित हो सकता है ,इसके बाद सम्भव है कि नया परिसर औऱ नया भवन में नए स्पीकर औऱ नई सरकार के साथ-साथ नया समीकरण के विपक्ष के साथ विधान सभा की करवाई आहूत होगी लेकिन पौने पाँच साल पूरी तरह से सदन की करवाई हंगामा का भेट ही चढ़ता रहा झारखंड में सता पक्षऔर विपक्षी दलों के टकराव के बीच पिछले दस सत्रों से सदन की कार्यवाही न के बराबर चली है। हर बार सरकार ने हो-हंगामे के बीच ही आवश्यक विधायी कार्यो का निष्पादन कर लिया है।
शोर-शराबे के बीच गिलोटिन का होता रहा प्रयोग
बजट तक मे विपक्ष के शोरगुल के बीच गिलोटिन के माध्यम से पास हुआ था और निर्धारित समय से पूर्व ही सत्र के अवसान की घोषणा कर देना पड़ा, हर बार
सत्र को सुचारू ढंग से चलाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष ने सभी दलों के बीच सहमति बनाने के उद्देश्य से हर सत्र में बैठक भी बुलाई लेकिन कई पार्टियों का रुख इन बैठक के प्रति भी नकारात्मक ही रहा कई बैठक के बाद भी कई बार सदन में अप्रिय स्थिति भी आई विधायक निलंबित तक हो गए
कार्यकाल में संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने पद छोड़ा
हंगामा पर मायूस संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय हमें अपना पद छोड़ दिया के बाद नीलकंठ सिंह मुंडा अब तक संसदीय कार्य मंत्री के पद का निर्वहन कर रहे हैं विधानसभा में हर सत्र अनुपूरक बजट लाने की भी परंपरा चल पड़ी है और विपक्ष में कोई हो या सत्ता पक्ष में कोई हो हर बार अनुपूरक भी आता है आलोचना भी होती है
प्रश्नकाल ध्यानाकर्षण तक रहा था बाधित
लगभग हर बार बार से प्रश्नकाल बाधित होता रहा है। ध्यानाकर्षण नहीं आ पाता है और शून्य काल की सूचनाएं लेने की औपचारिकता मात्र ही रह गई जाहिर सी बात है कि जनता के सवाल सदन में नहीं उठ पाए हैं। यानी कार्यकाल समाप्त होने तक विधानसभा की कार्रवाई को सुचारू करने के सारे प्रयास निरर्थक रहे अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि ना तो विपक्ष चाहता है और नाही सरकार चाहती है यानी विधानसभा परिसर विपक्ष और सत्तापक्ष के हंगामे का नारेबाजी का जगह बन गया जो सवाल परिसर में गूंजता है वाह सवाल सदन में आना चाहिए था लेकिन बेल में आना हंगामा खड़ा करना मीडिया की सुर्खियां बटोरना ही नियति बन गयी।