के के अवस्थी बेढंगा,
हाल ही मैं चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ विपिन रावत ने भारतीय सेना में IBG (Integrated Battle Group) या एकीकृत युद्ध समूह को जल्द ही स्थाई कमीशन देने के संकेत दे दिए है. यह IBG भारतीय सेना के युद्ध कौशल के विकास में एक मील का पत्थर साबित हो सकते है.
भारत जहां पकिस्तान की सीमा पर निरंतर आतंकवाद का सामना कर रहा है. वहीं चीनी सीमा पर चीनी सेनिकों के साथ उसे अक्सर दो-चार करना पड़ रहा है. इन सबसे प्रभावी रूप से निपटने के लिए भारत की सेना को किसी भी मोर्चे पर जल्द से जल्द लामबंद होने की कला में माहिर होना पड़ेगा, ताकि अगर युद्ध की स्थिति बने तो भारत ना केवल मजबूती से उनका सामना कर सके अपितु सामरिक रूप से स्थिति को भापते हुए उसका अनुकूल जबाब भी दे सके.
भारत को अब वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप अपनी रक्षात्मक नीति के साथ आक्रामकता को भी बढ़ाना पड़ेगा, ताकि दुश्मन को उसी की भाषा में प्रति उत्तर देकर अपनी सीमा सुरक्षा को अभेद्द बनाया जा सके. यह भारतीय सेना की युद्ध नीति में एक बड़ा बदलाव साबित होगा. कोरोना संक्रमण के कारण अब तक यह स्थाई रूप से ऑपरेशनल नहीं हो सका, परन्तु अब इसके संकेत सेना के द्वारा दे दिए गये है.
कैसे बनी IBG’s की रुपरेखा
IBG’s की रुपरेखा को पूर्णता समझने के लिए हमें भारतीय से की युद्ध नीति की इतिहास पर एक नजर डालनी होगी. आजादी के बाद भारतीय सेना के सारे ऑपरेशन सीधे तौर पर इन्फेंट्री के रूप में होते थे जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय सीमाओं की सुरक्षा था.
भारतीय सेना की नीति प्रमुख रूप से रक्षात्मक थी. 1962 व 1965 के युद्ध तक भारत को यह समझ आ चुका था, इस नीति से अधिक लाभ नहीं मिल रहा. चूंकि तकनीकि निरंतर बढ़ रही थी और पुरानी युद्ध नीति के कारण सैनिकों की क्षति भी अधिक होती रही थी और लामबंदी में भी समय अधिक लग रहा था. यह सब कहीं न कहीं भारतीय सेना के युद्ध मार्ग में एक अवरोध जैसा ही था.
इसके बाद भारत ने 1971 के युद्ध में अपनी नीति में आक्रामकता लाते हुए PT-76 टैंक्स का प्रयोग किया और मात्र 14 दिनों में ही बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कर दिया. इसमें भारतीय सेना को बहुत कम क्षति पर एक बड़ी कामयाबी मिली. यह रणनीति इस प्रारूप में अत्यधिक सफल साबित हुई. इसी को ध्यान में रखते हुए भारत ने 1979 में पहली मैक्नाईज्ड इन्फेंट्री यूनिट तैयार की. इसे सामान्य इन्फेंट्री की तुलना में अधिक नवीन हथियारों, टैंकों आदि से लैस कर दिया गया.
इस नीति और इसके विकास की प्रक्रिया ने धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए 2004 तक आते-आते Cold Start Doctrine का रूप ले लिया. परन्तु इसका उपयोग पहले बहुत कम होता था. उरी व पुलवामा हमले के बाद से सेना द्वारा इसके उपयोग को बढ़ा दिया गया, क्योंकि इसमें जवानों के हताहत होने की संभावना कम होती है, इसलिए इसका प्रयोग मूलतः पाकिस्तान व जम्मू- कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध हुआ. 2017 में जनरल विपिन रावत ने एक साक्षत्कार के दौरान कहा कि,
“The Cold Start Doctrine, which is essentially a limited war strategy designed to launch a strategic counterattack in Pakistani territory swiftly without in theory risking a nuclear escalation.” अर्थात
“ यह एक सीमित युद्ध रणनीति है, जो परमाणु वृद्धि को खतरे में डाले बिना पाकिस्तानी क्षेत्र में तेजी से रणनीतिक जबाबी हमले शुरू करने के लिए तैयार की गयी है .”
अभी तक यह अस्थाई तौर पर जरुरत के अनुसार गठित की जाती है. परन्तु अब इसी Cold Start Doctrine को आगे बढ़ाते हुए इसे स्थाई रूप प्रदान करने के लिए IBG’s की आधारशिला रखी गयी .
कैसा होगा IBG का प्रारूप
IBG’s सेना का एक ऐसा एकीकृत युद्ध समूह है, जो ब्रिगेड से बड़ा और डिवीजन से छोटा है. यह अत्यअधिक विकसित, नवीनतम तकनीकि से युक्त, इन्फेंट्री के मुकाबले बहुत चुस्त व पूर्णता आत्मनिर्भर है तथा जिसे मुख्यतः आक्रामक युद्ध कला में महारथ हासिल है. इसमें लगभग 5000 ट्रूप होंगे जो मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की अगुआई में कार्य करेंगे. यह ग्रुप भारत देश की किसी भी सीमा पर अपनी पूरी ताकत के साथ 12 से 24 घंटे में लामबंदी करने में सक्षम होगा, जो कम समय में ही युद्ध की गति एवं दिशा को बदलकर स्वयं की ओर निर्णायक स्थिति में लाने की लिए एक गेम चेंजर की भूमिका निभाएगा.
इनमें आर्टिलरी, UAV’s, टैंक आदि सभी विकसित हथियार होंगे जिससे इन्हें आक्रमण करने के लिए ना तो किसी रेजिमेंट का इन्तजार करना पड़ेगा और ना ही किसी की सहमती लेनी होगी.
चूंकि ये सभी एक ही यूनिट का हिस्सा होंगे अतएव इनमें एक टीम की जबरदस्त भावना होगी, जो युद्ध के समय उच्च मनोबल के लिए अत्तिआवश्यक है. आक्रामक नीति की प्रमुखता के कारण इनको कहीं भी लामबंदी के लिए 12 से 24 घंटो का ही समय लगेगा जो सामरिक रूप से युद्ध में लाभकारी होगा. ये पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण युद्ध क्षेत्र में आसानी से कार्य कर सकते है और ये आक्रामक व रक्षात्मक दोनों का रोल निभा सकते है.
स्थाई भूमिका की आवश्यकता क्यों ?
अगर हम भारत की सीमाओं का भौगोलिकरूप से अध्यन करे तो पायेंगे कि ये सीमाएं अलग-अलग क्षेत्रों में आती है और उनकी भौगोलिक परिस्थितियां भी भिन्न-भिन्न हैं. जहां पंजाब की सीमा नदियों और मैदानी इलाकों से घिरी है.
वहीं राजस्थान की सीमा पर प्रचंड गर्मी है. जहां जम्मू- कश्मीर पहाड़ों व जंगलों से घिरा हुआ है वहीं लेह-लद्दाख पर हड्डियां कंपाने वाली ठण्ड है. सभी जगह पर एक अलग युद्ध नीति से काम करना होता है तथा हर जगह के लिए अलग तरह के हथियार व ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है.
उस स्थान पर कार्य करने में दक्षता पाने के लिए उस स्थान पर स्थाई रूप से रहने व जाने की आवश्यकता होती है, ताकि सैनिक पूरी तरह से उस वातावरण की परिस्थियों के अनुरूप स्वयं को ढ़ाल लें. अब हम One size fits -all वाले formula अधिक नहीं चल सकते. अब हमें परिवर्तन की नितांत आवश्यकता है.
अब IBG’s के एसे स्थाई ग्रुप्स तैयार किये जायेंगे, जो उस निश्चित क्षेत्र में कार्य करने में दक्ष होंगे. अभी तक हमारा ध्यान केवल पहाड़ी इलाकों पर था, परन्तु वर्तमान परिस्थितों की गंभीरता को समझते हुए अब इन IBG’s को स्थाई बनाकर 5 से 6 ग्रुपों में सेना की तत्कालीन नीति के अनुसार तैनात कर दिए जायेंगे, जो भारतीय सीमा सुरक्षा में एक बड़ी एवं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे.
इन IBG’s की सक्षमता व तत्परता को परखने के लिए अक्टूबर 2019 को अरुणांचल प्रदेश में हिम विजय नाम का एक युद्ध अभ्यास किया गया था, जो IBG’s के पहाड़ी इलाकों में युद्ध कौशल पर केन्द्रित था.
आगामी भविष्य में हमें भारतीय सेना के द्वारा और युद्ध अभ्यास देखने को मिलेंगे. भारत में इस पर निरंतर काम चल रहा है. भारत की सेना विश्व की बड़ी व युद्ध कौशल में एक दक्ष सेना है जो किसी भी परिस्थिति से निपटने में माहिर है. भारतीय सेना सीमाओं की सुरक्षा के लिए निरंतर स्वयं की तकनीकि को विकसित कर खुद को लगातार सुदृढ़ कर रही है. ये IBG’s सेना की युद्ध नीतियों के विकास पथ पर भविष्य में मील का पत्थर साबित हो सकते है.