खूंटी: अवैध अफीम की खेती से बदनाम खूंटी जिले को दो भाईयों ने मिलकर नई राह दिखाई है. साढ़े तीन एकड़ बंजर पहाड़ी पथरीली जमीन पर लेमनग्रास की लहलहाती खेती कर डाली. मात्र साढ़े तीन एकड़ की खेती से आसपास का पूरा इलाका लेमन ग्रास की सुगंधित वायु से स्वच्छ हो गया है.
कोरोना संकट काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने की एक छोटी पहल दो मुंडा आदिवासी भाईयों ने शुरू की है.महुआ से दारू बनाने की देशी तकनीक से खूंटी के दो मुंडा भाईयों ने औषधीय लेमन ग्रास से ऑयल निकालकर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाया है.
नक्सल प्रभावित जंगल पहाड़ों से घिरा खुंटी जिले के कुदा पंचायत के कोजडोंग गांव के रहने वाले दो भाई हैं सनिका पहान और चाड़ा पहान. दोनों भाईयों के प्रयास ने प्रधानमंत्री नरेंद्र की आत्मनिर्भर भारत के लिए एक कदम बढ़ाया है.
जंगल के बीच दो भाइयों की माइक्रो डिस्टिलेशन यूनिट आने वाले दिनों में गांवों में ही नहीं, अन्य शहरों में भी कारोबार बढ़ाएगी. जरूरत है सिर्फ सरकार के प्रोत्साहन और गांव की तकनीक को वृहत पैमाने पर आगे बढ़ाने की, गांव की परंपरागत व्यवस्था से उपजी रोजगार की बेहतर मार्केटिंग कर बाजार उपलब्ध कराया जाय तो आने वाले समय मे खूंटी को अवैध अफीम के धंधे से पूरी तरह रोका जा सकता है.
बड़े प्रोसेसिंग यूनिट में ज्यादा कच्चा माल की जरूरत होती है लेकिन गांव में बने देशी तकनीक से चार- पांच बंडल लेमन ग्रास के पौधे से ही ऑयल निकलने की पूरी प्रक्रिया पूरी ही जाती है.
भाइयों ने बताया कि वे लेमन ग्रास की खेती किए लेकिन इससे कैसे तेल निकलेंगे इसकी जानकारी नहीं थी. अनिगड़ा में एक लेमनग्रास और तुलसी ऑयल निकलने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगा है उसे देखकर गांव में ही कम पूंजी में देशी तकनीक के माध्यम से लेमन ग्रास ऑयल निकलना शुरू किए.
जब परंपरागत साग सब्जी की खेती ने किसानों की कमर तोड़ दी तो साढ़े तीन एकड़ बंजर पथरीली जमीन पर लेमन ग्रास की खेती दोनों भाइयों ने मिलकर की.
दारू बनाने की तकनीक पर ही लेमन ग्रास को उबाल उबालकर डिस्टिलेसन यूनिट से निर्मित आसवन विधि से लेमन ग्रास ऑयल निकालना आरम्भ कर दिया है. मात्र 5-6 पौधों से 500 मिलीलीटर ऑयल निकाल लिया. लेमनग्रास के ऑयल से सैनिटाइजर का निर्माण किया जाएगा.
खूंटी जिले में ग्रामीण आजीविका मिशन और सेवा वेलफेयर सोसाइटी ने बड़ी संख्या में ग्रामीणों को खाली पड़े खेतों और बंजर जमीन पर लेमन ग्रास खेती कराने की शुरुवात की. अब सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से औषधीय पौधों की खेती से स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे और किसानों की कृषि पर आत्मनिर्भरता से विकास को रफ्तार भी मिलेगी.