रांची : वाम दलों ने आरोप लगाया है कि कमर्शियल माइनिंग के लिए कोल ब्लॉक के नीलामी के मुद्दे पर केंद्र सरकार के पूरी तरह बेनकाब हो जाने से भाजपा के नेतागण बौखला गए हैं और गलत बयानी कर सच्चाई पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं.
वामपंथी नेताओं ने कहा कि कमर्शियल माइनिंग के लिए चिन्हित कोल ब्लॉक के नीलामी मे केंद्र सरकार पांच बार विफल रही है, क्योंकि कोई भी खरीददार सामने नहीं आया. इस परिस्थिति में प्रधानमंत्री ने नीलामी के लिए खुद मोर्चा संभाल लिया है. केंद्र सरकार कमर्शियल माइनिंग के लिए इतनी उतावली है कि उसने खनिज विधि (संशोधन) अधिनियम 2020 जिसकी अवधि 14 मई को खत्म हो जाने के बाद भी पहले 11 जून और बाद में 18 जून को नीलामी की प्रक्रिया शुरु कर दी. देश के मुखिया ही इसकी मॉनिटरिंग कर रहे थे.
केंद्र सरकार की इस जन विरोधी, मजदूर विरोधी और राष्ट्र विरोधी निर्णय के खिलाफ सबसे पहले देश के कोयला मजदूरों ने विरोध का विगूल फूंका और पिछले दिनों इसके खिलाफ लगातार आंदोलन भी किए. अब कोयला मजदूर पूनः कमर्शियल माइनिंग के फैसले के खिलाफ दो से चार जुलाई तक तीन दिवसीय हड़ताल पर जा रहे हैं. दूसरी ओर हेमंत सरकार ने राज्य के पर्यावरण, जंगलों की रक्षा और संविधान की पांचवी अनुसूची से आच्छादित इस क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासियों और दूसरे गरीबों को एक नए विस्थापन से बचाने के लिए केंद्र सरकार के असंवैधानिक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई.
छत्तीसगढ़ के वनमंत्री ने भी इन कोल ब्लॉक से वाणिज्यिक खनन होने पर वहां के पर्यावरण और वन्य प्राणियों की सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए इस पर रोक लगाए जाने की मांग की है। महाराष्ट्र सरकार ने भी कोविड 19 के दौर में कोल ब्लॉक के नीलामी के लिए भाजपा की बेसब्री पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है.