- जानवरों और मछलियों के लिए प्रदेश की किसी भी नदी का पानी सेफ नहीं
- झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सर्वे रिपोर्ट में हुआ खुलासा
रांची: झारखंड की नदियां अब जहर उगल रही हैं। नदियों का पानी तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है। पानी में आॅक्सीजन की मात्रा लगातार घटती ही जा रही है। वजह यह है कि नदियों के पानी में मानक से बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड(बीओडी) अधिक हो गया है। जबकि बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड मानक से कम होना चाहिए।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदेश की सात नदियों का 15 जगहों से सैंपल एकत्र कर जांच किया। इन नदियों में गर्गा, शंख, स्वर्णरेखा, दामोदर, जुमार, कोनार, और नलकरी नदी का सैंपल लिया गया। जिसमें अधिकांश जगहों में पानी में आॅक्सीजन की मात्रा कम पाई गई।
अधिकांश जगहों पर नदियां हो गई हैं प्रदूषित
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार सभी नदियां अधिकांश जगहों पर प्रदूषित हो गई हैं। वहां पानी में आॅक्सीजन की मात्रा लगातार घटते ही जा रही है। गर्गा नदी का पानी तालमुचू पुल(बोकारो) के पास प्रदूषित हो गई है। वहां बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड 4.2 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई है। जबकि बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड दो से तीन मिलीग्राम प्रतिलीटर से कम होना चाहिए। इसी तरह शंख, स्वर्णरेखा और नलकरी नदी में भी आॅक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है।
मछलियों और जानवरों के लिए सेफ नहीं है पानी
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जिन नदियों के पानी का सैंपल लिया था, वहां के पानी जानवरों और मछलियों के लिए सेफ नहीं है। जानवरों और मछलियों के लिए पानी में बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड की मात्रा 1.2 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए। जबकि नदियों के पानी में इसकी मात्रा सात मिलीग्राम प्रति लीटर से 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक है। इस कारण मछलियां मर रही हैं और जानवरों को कई तरह की बीमारियां भी हो रही हैं।
जानवरों और मछलियों के लिए भी पानी नहीं है सेफ
क्या कहते हैं पूर्व पीसीसीएफ
पूर्व पीसीसीएफ( प्रधान मुख्य वन संरक्षक) सह हेड आॅफ फोर्स बीसी निगम ने कहा कि नदी की एक कैरिंग कैपिसिटी होती है। अगर उसमें क्षमता से अधिक प्रदूषित चीजों को डाला जाए, तो पानी का बहाव कम हो जाता है। इस वजह से पानी प्रदूषित हो रहा है। पानी में आॅक्सीजन की कमी हो रही है। दूसरी बात है यह है कि इंडस्ट्रीज को सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की जरूरत है। झारखंड अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से वहीं बीओडी की मात्रा की जांच हो जाएगी।