जम्मू: कश्मीर के श्रीनगर निवासी एंबुलेंस चालक जमील अहमद डिगू ऐसे कोरोना वारियर्स के रूप में सामने आए हैं, जिन्होंने श्रीनगर में कोरोना से मरने वाले सभी मरीजों के शव को न सिर्फ कब्रिस्तान तक पहुंचाया बल्कि उन्हें दफन करने में भी मदद की. जब से देश में कोरोना का संक्रमण फैला है, ऐसी खबरें भी सुर्खियां बनीं कि कोरोना से मौत के बाद बेटे ने पिता के शव को कंधा नहीं दिया, मां के शव को कंधा नहीं दिया, परिवार वाले शव छोड़कर चले गए. इन्हीं खबरों के बीच जमील पिछले चार महीने से अपनी जान की परवाह किए बिना मानवता की सेवा में लगे हुए हैं.
स्वास्थ्य विभाग में एंबुलेंस चालक के पद पर काम करने वाले जमील की ड्यूटी कोरोना मरीज के शव को अंतिम संस्कार के लिए कब्रिस्तान और श्मशान घाट पहुंचाने तक ही सीमित है. लेकिन वह मृतक के पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर शव को दफनाने के साथ नमाज-ए-जनाजा भी पढ़ते हैं. श्रीनगर जिले में अभी तक जितनी भी मौतें हुई हैं, सभी को अस्पताल से कब्रिस्तान ले जाने और दफनाने का काम उन्होंने ही किया है.
जमील ने बताया कि शुरू में जब उन्होंने शवों को ले जाना शुरू किया तो उनके घर वालों ने इस पर एतराज जताया, लेकिन अब उन्हें अहसास हो गया है कि ये मानवता की सेवा है. अब वह कुछ नहीं बोलते. मेरे बच्चे भी मुझ पर गर्व करते हैं. जमील के मुताबिक जब शव को दफनाकर लौटते हैं तो सबसे पहले अस्पताल पहुंचकर पीपीई किट को कूड़ेदान में डालते हैं. घर पहुंचते ही स्नान करने और सैनिटाइज होने के बाद परिवार वालों के बीच जाते हैं.
जमील ने बताया कि जब श्रीनगर में कोविड-19 से पहली मौत हुई तो उस समय हालात ऐसे थे कि सब डरते थे. रैनावारी की 73 वर्षीय बुजुर्ग महिला को दफनाने के लिए हम केवल तीन लोग सामने आए थे. दो मोहल्ले वाले और तीसरा मैं. क्योंकि महिला के सभी परिवार वालों को क्वारंटीन कर दिया गया था. डर ऐसा था कि जनाजे में मोहल्ले वाले भी नहीं पहुंचे.
उन्होंने कहा कि मेरा काम दफनाने का नहीं है लेकिन मैंने ऐसा इसलिए किया ताकि लोगों का डर दूर हो और वह यह सोचने पर मजबूर हों कि अगर वह ऐसा कर सकता है तो हम क्यों नहीं. लोग अब जनाजे में भी आने लगे हैं. जमील के मुताबिक वह पिछले करीब 10 सालों से एंबुलेंस चला रहे हैं. यह मेरी ड्यूटी है, मैं इससे कैसे पीछे हट सकता हूं. स्टाफ और अधिकारी भी मुझे पूरा सहयोग देते हैं.